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________________ वैशाली में साम्राज्य विरोधी भावनां कौशाम्बी वाले उनको आहार देने को उत्सुक थे, किन्तु उनके अभिग्रह का पता लगने का कोई साधन न था। अतएव वह नगर में प्रतिदिन आते तथा वापिस चले जाते थे। जब चन्दनबाला एक पैर भौरे के अन्दर तथा एक पैर बाहिर रखे किसी अतिथि के आने की प्रतीक्षा कर रही थी तो भगवान् महावीर स्वामी उधर से पाए । चन्दना ने जोर से कहा-"भगवन् | आहार पानी शुद्ध है। पधारिये, पधारिये।" भगवान् इस आवाज को सुनकर पहिले तो उसको देखकर रुके किन्तु बाद में वह कुछ सोचकर फिर आगे बढ़ गए। राजा चेटक-उनके अभिग्रह का कुछ पता लगा ? हढवर्मा-जी हाँ ! उनका निश्चय था कि वह किसी ऐसी कुमारी राजकन्या के हाथ से ही सूप मे रखी उबली हुई कुलथी के दानो का आहार लेगे, जो तान दिन से भौरे मे भूखी-प्यासी बन्द हो, जिसके हाथ-पैरो मे जजीर हो, जिसका सिर मुंडा हुआ हो और वस्त्र के नाम पर जिसने केवल एक कच्छा पहिना हुआ हो, जिसका एक पैर भौरे के अन्दर तथा दूसरा बाहिर हो तथा जो पहिले हँसकर फिर रोने लगे। रानी सुभद्रा-यह सारी बाते तो मेरी बच्ची की ही थी। जान पडता है मेरे घेवते ने अपनी बहिन के उद्धार के लिये ही ऐसा अभिग्रह किया था। दृढ़वर्मा-नानी जी । भगवान् के सबन्ध मे ऐसी बात कहकर उनका अपमान मत कीजिये । आप उनको चाहे जो समझे, वह तो राग-द्वेष से बहुत ऊपर है। उनके लिये उनका अपना कोई सबन्धी नही है। उन्होने चन्दना के किसी पिछले जन्म के विशेष पुण्य के कारण ही ऐसा अभिग्रह किया था। किन्तु चन्दना मे अभिग्रह की एक बात की फिर भी कमी थी। वह हँस तो रही थी, किन्तु रो नही रही थी। अतएव भगवान् महावीर स्वामी अभिग्रह की सारी बाते मिलती देखकर तथा एक बात के न मिलने से आगे को चल पडे।" रानी सुभद्रा-तब तो बेचारी बडी निराश हुई होगी? दृढवर्मा-अजी, वह उसी दम फूट-फूट कर रोने लगी। १५
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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