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________________ श्रेणिक विम्बसार wwwANA यह भी हो सकता है कि मै इनके कहने से विवाह कर लू और फिर भी ब्रह्मचारी बना रहू । किन्तु ऐसा करने से किसी दूसरे की कन्या के ऊपर अत्याचार होगा । अस्तु, अब लज्जा त्यागे बिना काम न चलेगा। अच्छा, चल कर कहता हू।" मन ही मन यह सोचकर कुमार महावीर बाहिर वहा आये, जहाँ राजा सिद्धार्थ बड़े उत्साह से उनके लग्न की तैयारी करवा रहे थे । उन्होने आकर उनसे कहा "पिता जी | मुझे आप से कुछ निवेदन करना है।" "कहो बेटा ! क्या बात है?" "पिता जी | मै कई दिन से सकोच मे पडा था कि आप से निवेदन करू या न करू । किन्तु जब मैने देखा कि अब आप से कहे बिना काम न चलेगा तो मुझे अपना मुख खोलना ही पडा, क्योकि लज्जा वही तक करनी चाहिये जहाँ तक आत्मा का सर्वनाश न हो।" वर्धमान कुमार के गूढ वचन सुनकर राजा सिद्धार्थ की माथा ठनक गया, किन्तु उन्होने थोडा सयत होकर कहा "तुम तो पहेली बुझा रहे हो कुमार | खुल कर कहो बात क्या है ?" __"आप खुल कर कहने की अनुमति देते है, यह जान कर मुझे प्रसन्नता हुई। बात यह है कि मेरे जीवन का लक्ष्य त्याग है, भोग नही, आत्मकल्याण है, आत्मविनाश नही, साधु जीवन है, विवाह बधन नही । फिर मुझे इस प्रकार विवाह-बधन मे बाधने का यह आडम्बर क्यो रचा जा रहा है ?" • कुमार जब यह वचन राजा सिद्धार्थ से कह रहे थे तो वहा महारानी त्रिशला देवी भी आ गई थी। उन्होने जो कुमार के यह शब्द सुने तो एकदम घबरा गई । वास्तव मे कुमार के इन शब्दो ने रग मे भग कर दिया । तब राजा सिद्धार्थ बोले "बेटा ! यदि कोई किसी मकान की छत पर चढना चाहता है तो उसे एक-एक सीढी करके ही छत पर चढना होगा। वह कूदकर छत पर नहीं जा सकता। यदि तुमको मुनिपद ग्रहण करना है तो तुमको त्याग की ऋमिक सीढी १८०
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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