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________________ भगवान महावीर की दीक्षा पर होकर ही जाना होगा। अभी तुम विवाह कर लो । जल तुम्हारे एक सन्तान हो जावेगी तो हम तुम्हारे सयम-मार्ग मे विघ्न न डालेगे।" __"नही पिता जी ! प्रत्येक व्यक्ति के लिए सीढिया एक सी नहीं होती। बौना आदमी एक-एक सीढी करके भी छत पर नही चढ सकता । किन्तु अधिक लम्बा आदमी दो-दो, तीन-तीन सीढियो को एक साथ लाध कर ऊपर जा सकता है । मुझ को विवाह न करके दीक्षा लेनी है। मुझे अनुमति दीजिये कि मैं घर छोडकर बन को जाऊ ।" कुमार के इन शब्दो ने सबके ऊपर वज्रपात का काम किया। उनको दिखलाई दे गया कि कुमार अब घर में न रह सकेगे । महारानी त्रिशला देवी का तो एकदम गला भर आया । वह रुग्रासी होकर कुमार से बोली__ "बेटा ! क्या मैने तुझे इसी दिन के लिए पाला था कि तू हम लोगो को वृद्धावस्था में दगा देकर चला जाये । जब तेरे सुख देखने तथा सुख दिखाने के दिन आए तो तू वन को जाने की बात कर रहा है।" ___ "माता ! तुम आज कैसी भोली बाते कर रही हो । तुम तो जानती हो कि यह संसार केवल दुखरूप है। इसमे सुख कहीं भी नहीं है । जो कुछ थोडा बहुत भ्रम के कारण सुख दिखलाई देता है, वह सुख नही वरन् वास्तव में दुख ही है। वह सुख शहद मे लपेटी हुई तलवार की धार के समान है । उसको चाटते ही जीभ शतखण्ड होकर गिर जावेगी। माता । तुम मेरी जीवनदायिनी हो। तुमने मुझे यह जीवन दिया है तो मुझे अन्धकार से प्रकाश मे भी आने दो। यह मोह तो ससार मे गिराने वाला है। मै स्वार्थी नही हूँ। मै आत्म कल्याण करके ससार का कल्याण करना चाहता हू । मुझे वन को अभी जाना • आवश्यक है।" यह कहकर उन्होने अपने सभी वस्त्र उतार कर दान करने आरम्भ किय । अब माता-पिता को विश्वास हो गया कि हाथी के बाहिर निकले हुए दातों को जबर्दस्ती भीतर को नही किया जा सकता। भगवान् के दृढ वैराग्य के सामने उनको पराजय स्वीकार करनी पड़ी और उनको भगवान् को दीक्षा लेने की अनुमति देनी पड़ी.। अब कुमार ने अपनी सभी वस्तुओ को दान करके अपने
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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