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________________ भगवान महावीर की दीक्षा mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmr था । ७, चन्द्रमा के पश्चात् मैने उदयाचल पर उदय होते हुए बाल सूर्य को देवा । ८ फिर मैने दो कलशो को देखा। वह दोनो सोने के बने हुए थे। इसके पश्नात् मैने जल के भीतर दो मछलियो को देखा। वह दोनो सरोवर के जल मे बडे आनन्द से क्रीडा कर रही थी। १० फिर मैंने एक सुन्दर सरोवर को देखा, जिसमे उत्तम सुगधि वाले कमल फूल रहे थे। ११ इसके पश्चात् मैने उत्तम समुद्र देखा । समुद्र में ज्वार-भाटा आ रहा था, जो उसके किनारे को झकझोरे डालता था । १२ फिर मेने एक सुन्दर सिंहासन देखा ! उसमे स्थान-स्थान पर जडी हुई मणिया अत्यन्त शोभा उत्पन्न कर रही थी। १३ सिंहासन के बाद मैने देवताओ के विमानो को आकाश मे आते हुए देखा। विमानो मे लगे हुए अनेक प्रकार के रत्न अपनी प्रभा से दिशाओ को प्रकाशित कर रहे थे ।१४ फिर मैने धरणेन्द्र के रथ को देखा, जिसके पहिये पृथ्वी को खोदे देते थे। १५ इसके बाद मैने रत्नो के एक ढेर को देखा, जिसकी ज्योति दशो दिशाओ को प्रकाशित कर रही थी । १६ इसके पश्चात् मैने ऐमी अग्नि-शिखा को देखा, जिसमे धुआ नही था। इन सोलह स्वप्नो के पश्चात मैने एक हाथी को अपने मुख मे प्रवेश करते देखा । अब आप कृपा कर मुझे इन स्वप्नो का फल बतलावे। राजा सिद्धार्थ-रानी । तुम्हारे स्वप्न बहुत अच्छे है। तुम ध्यान देकर सुनो। मैं तुम्हारे एक-एक स्वप्न का फल कहता हू। समस्त स्वप्नो का फल यह है कि तेरे गर्भ से एक अलौकिक बालक का जन्म होगा। प्रथम स्वप्न हाथी का फल यह है कि तेरा पुत्र धर्मचक्र का प्रवर्तन करने वाला होगा। बैल धर्म का चिन्ह है । इसका फल यह है कि तुझे धर्म से सुख की प्राप्ति होगी और वैसा ही तेरा पुत्र भी होगा। सिंह का अर्थ यह है कि तेरा पुत्र अत्यन्त बलशाली होगा और वह अपने तपश्चरण से अपने सभी जन्मो के कर्मफल को नष्ट कर देगा । स्नान करती हुई लक्ष्मी का फल यह है कि तेरे पुत्र को देवता लोग सुमेरु 'पर्वत पर क्षीर सागर के जल से स्नान करावेगे। सुगधित पुष्पो की माला का फल यह है कि तेरे पुत्र का शरीर अत्यन्त सुगधित होगा। सोलह कलाओ को प्रकाशित करने वाले पूर्ण चन्द्रमा का फल यह है कि तेरा पुत्र अपनी वाणी से धर्म का विस्तार करेगा । सूर्य का फल यह है कि तेरा पुत्र अज्ञान रूपी महान्
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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