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________________ श्रेणिक बिम्बसार किये । इस समय राजा सिद्धार्थ भी नित्यकर्म से निवृत्त होकर अपनी अध्ययनशाला में बैठे थे दि त्रिशला देवी ने वहा जाकर कहा "महाराज का कुछ गम्भीर अध्ययन चल रहा है क्या "नही, ऐसी कोई बात नही । आओ, चली आओ । निश्चय से तुम मेरे earer कक्ष मे fair faशेष कारण के नही आती । तुम्हारा मुख आज विशेष रूप से प्रसन्न भी है । क्या कोई आनन्ददायक समाचार है । ܙܐ ܕ “आज रात्रि के पिछले पहर में मैने अनेक स्वप्न देखे । यद्यपि उन स्वप्नो मे मुझे कोई खास बात मालूम नही देती, किन्तु न जाने क्यो मेरा मन उनको देखकर बहुत प्रसन्न हो रहा है । आश्चर्य की बात तो यह है कि स्वप्नो की सख्या अनेक होते हुए भी मुझे वह अभी तक अच्छी तरह से याद है ।" “भला तुमने कुल कितने स्वप्न आज रात देखे ? १" " पूरे सोलह ।” "अच्छा, सुने तो तुमने क्या-क्या स्वप्न देखे है २" "उन्ही को सुनाने को तो मै आप के पास आई हू | आप निमित्त शास्त्र के एक असाधारण विद्वान् गिने जाते है । मेरे स्वप्नो का फल आप अवश्य कह सकेगे । मेरा विश्वास है कि उनका फल अवश्य ही उत्तम होगा ।" "अच्छा, तुम अपने स्वप्नो को सुनाओ ।" "सबसे प्रथम महाराज | मै क्या देखती हू कि १ मेरे सामने एक हाथी खडा हुआ है। उसके गण्डस्थल से मद बह रहा था । वह ऐरावत के समान ऊँचा था । २ फिर मैने एक बैल देखा । वह बैल चन्द्रमा की चादनी के समान सफेद था । ३ बैल के पश्चात् मैने एक भयानक सिह देखा । सिह का रंग लाल था और उसको देखने से भय लगता था । ४ उसके पश्चात् मैने लक्ष्मी को देखा । लक्ष्मी कमल के ऊपर बैठी हुई थी और उसके दोनो ओर खडे हुए दो हाथी उसको स्वर्णकलशो से स्नान करा रहे थे । ५ फिर मैने दिव्य फूलो की एक माला देखी। उसके फूलों मे से दिव्य सुगन्ध आ रही थी । ६ इसके पश्चात् मैने सोलह कलाओं से चमकते हुए पूर्ण चन्द्रमा को देखा । नक्षत्र - मण्डल तथा तारागण के बीच में खिला हुआ चन्द्रमा उस समय बड़ा सुन्दर दिखलाई दे रहा १७६
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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