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________________ 4545454545454545454545454545 मंगल स्मरण 108 आचार्यश्री शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) को मेरा कोटिशः 1नमोस्तु । आचार्य महाराज बहुत सरल स्वभावी थे, वात्सल्य के धनी थे. और - गुणों के प्रति उनको बहुत अनुराग था। ऐसे महान दिगम्बराचार्य का यह स्मृति ग्रन्थ हमारी गुरुभक्ति का प्रतीक है। उनके गुण हमारे चारित्र वृद्धि के कारण हैं। यही हमारे उनके प्रति श्रद्धा सुमन हैं। रामवन (सतना) उपाध्याय भरतसागर 29.3.92 संघस्थ आचार्य विमल सागर जी ज्योतिर्धर युगपुरुष परमपूज्य आचार्यश्री शान्तिसागर जी 'छाणी' महाराज अध्यात्म योगी ज्योतिर्धर युग-पुरुष थे। अहिंसा, संयम, तप की त्रिवेणी में निमज्जित संयम साधना से अनुप्राणित आपका आदर्श यशस्वी जीवन प्रत्येक मानव के लिए मार्गदर्शक बना, अनेक भव्यात्माओं ने कल्याणमार्ग को अपनाकर अपना जीवन-लक्ष्य प्राप्त किया। साधु के जीवन की सर्वाधिक विशेषता यही है कि वह अपने स्वीकृत - धर्मपथ से कभी विचलित नहीं होता, दुविधाओं और सुविधाओं की काली घटाएँ उसको कर्तव्य पथ से कभी विचलित नहीं कर पातीं। आचार्य श्री के जीवन दर्शन का जब हम गम्भीरता से परिशीलन करते हैं तो उनके जीवन में साध्वाचार के प्रति दृढ़ता, स्थिरता और निश्चलता के ही दर्शन होते हैं। चारित्रिक दृढ़ता और ज्ञानानुराग का संगम आपके जीवनतीर्थ की सबसे बड़ी विशेषता रही। आपका समग्र जीवन युगचेतना के अभ्युत्थान के लिए ही समर्पित रहा। उनकी वाणी आज भी भक्तों के हृदयाकाश मे प्रतिध्वनित हो रही है। उनका कर्म आज भी समाज को विकास तथा प्रगति का दिव्य-संदेश दे रहा है। जिनागम मंदिर के प्रज्ञादीप आचार्य श्री के चरणों में अपनी श्रद्धाञ्जलि अर्पित करता हुआ त्रिबार नमोऽस्तु निवेदन करता हूँ। उपाध्याय ज्ञानसागर शिष्य-आचार्य सुमतिसागर जी प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ ALA 45454545454545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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