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________________ 9595555555555555555 चारित्रनायक आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) ज्ञान, ध्यान, तपोरक्त एवं समतामयी साधना से परिपूर्ण चारित्र निष्ठ साधक थे। उनकी आगमानुकूल चर्या स्व और पर का कल्याण करने वाली थी। बीसवीं शताब्दी के प्रथम चरण में होने वाले चारित्र नायक के प्रति मैं संयम भावना से युक्त होता हुआ अपनी विनयाञ्जलि अर्पित करता हूँ। पूज्य आ. शान्तिसागर जी महाराज का स्मृति ग्रंथ प्रकाशित करवाकर विद्वत् वर्ग ने अभूतपूर्व कार्य कर आदर्श महापुरुष के पवित्र जीवन वृत्त को उजागर किया एवं जन-जन में मनि धर्म के प्रति सच्ची श्रद्धा भक्ति को प्रकट किया। आचार्य शान्तिसागर स्मृति ग्रंथ के समस्त संपादक मंडल को एवं कर्मठ कार्यकर्ताओं को मेरा मंगलमय शुभाशीर्वाद है। कल्पद्रुम विधान नागपुर प्रज्ञा श्रमण देवनन्दि मुनि 31.1.92 आत्महितैषी TE दक्षिण के 108 आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज तथा उत्तर भारत के 108 आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज दोनों ही प्रभावक आचार्य थे। छाणी ग्राम के आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज अध्यात्म प्रिय एवं आत्म हितैषी थे, अतः उनका अधिक प्रचार-प्रसार नहीं हो पाया। इन्होंने अपने जीवन में आत्महित को प्रधानता दी तथा बाह्य क्रियाकाण्डों से दूर रहकर आचार्य श्री कुन्दकुन्द की आम्नाय का संरक्षण व परिवर्धन किया। इनके उपदेशों से प्रभावित होकर अनेक लोगों ने अंधविश्वासों व मूढ़ताओं को छोड़कर अवश्य ही आत्महित का अवलम्बन किया। ये महान तपस्वी थे तथा इन्होंने आत्महित रूप साध्य की सिद्धि की। मुनि सुधासागर महाराज 11 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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