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________________ 1514614545454545454545454545454545 हार्दिक श्रद्धाञ्जलि भगवान महावीर के अन्नतर कुन्द-कुन्द स्वामी की शुद्ध आम्नाय में पूज्यपादाचार्य श्री शान्तिसागर जी "उत्तर" का उदभव हुआ। गौरवशाली इस भारत वसुन्धरा पर अगणित ऋषि, मुनियों का आवागमन होता रहा है, उन्हीं में से एक दीप्तिमान् नक्षत्र के तुल्य हैं आचार्य शान्तिसागर जी महाराज। आपने अपने समय में उत्कृष्ट चारित्र का परिपालन करते हुए सम्यग्ज्ञान का विशेष प्रचार-प्रसार कराया, जिसके फलस्वरूप आज भी अनेकों आश्रम, गुरुकुल विद्यालय एवं पाठशालाएं परिलक्षित हो रही हैं। विशेष गौरव की बात तो यह है, कि सन्तशिरोमणि, प्रशान्तमूर्ति श्री 108 आचार्य रत्न शान्तिसागरजी महाराज हमारे परम्पराचार्य गुरुदेव हैं। आचार्य शान्तिसागर स्मृति ग्रंथ प्रकाशित कराने की चर्चा उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने अनेकों बार की एवं उन्हीं के प्रयास से यह कार्य सम्पन्न हो रहा है। विशेष प्रसन्नता की बात यह है, कि उपाध्याय श्री के मार्गनिर्देशन में यह स्मृति ग्रन्थ कुशल सम्पादक मंडल द्वारा प्रकाशित किया जा रहा : ग्रंथों में समाहित स्याद्वाद शैली में चारों अनुयोगों के लेखों के पठन-पाठन से समाज लाभान्वित हो इसी भावना के साथ समाधि सम्राट आचार्य श्री जैसा उत्तम समाधि मरण मेरा भी हो यह भावना भाते हुए उनके पुनीत चरण कमलों में श्रद्धाञ्जलि अर्पित करते हुए कोटि-कोटि नमोस्तु । लखनादौन 30.3.92 आचार्य कल्प सन्मतिसागर जी प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 3599999999999999
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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