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________________ 45454545454545454545454545454545 शान्तिसागर छाणी को परोक्ष वंदना करता है। उनकी आत्मा जल्दी से मोक्ष सुख को प्राप्त हो। उनके चरणों में श्रद्धाञ्जलि अर्पण करते हैं। # LELELE आचार्य शान्तिसागर जी महाराज टीकमगढ़ संघ सहित पधारे थे। उनको देखकर वहाँ की अन्य समाज कहने लगी कि नंगे साधु आ गये, अब पानी नहीं पड़ेगा, अकाल पड़ेगा। ये अदर्शनीय हैं ऐसा वेद में लिखा है। इतना कहा कि यह समाचार आ. श्री को मालूम हो गया और दोपहर को 5 12 बजे से धूप में सामायिक की और प्रतिज्ञा लेकर बैठ गये-पानी पड़ेगा तभी उठेंगे। फलतः 2 घंटे बाद ही वर्षा हो गई और वहाँ के लोग सभी प्रभावित हुए। राजा ने भी अच्छी भक्ति दिखलाई। जैनधर्म की प्रभावना हुई। यद्यपि TE पंचमकाल है पर सत्यता अभी भी मौजूद है। कुछ लोग आजकल नारे लगाने TE लगे हैं कि पंचमकाल में साधु नहीं होते, यह कहना बिल्कुल गलत है। पंचमकाल के अंतिम समय तक भावलिंगी साधु रहेंगे। समाज को संदेश है कि ऐसे लोगों की बातों में नहीं आयें। साधु हैं तभी तक जैन धर्म है। "न । धर्मो धार्मिकैः बिना" यह बात बिल्कुल सत्य है। सोनागिर आ. पार्श्वसागर महाराज महान् तपस्वी आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) महान तपस्वी थे। वे अपने युग के सच्चे एवं परमादरणीय आचार्य थे। जहां भी विहार करते, वहीं धर्मामृत की वर्षा कर देते। उन्होंने अपने पावन विहार से राजस्थान के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश, बिहार, देहली, गुजरात, मध्यप्रदेश सभी को लाभान्वित किया। ऐसे परम तपस्वी आचार्य श्री के चरणों में त्रिकाल नमोस्त। धूलिया (महाराष्ट्र) आचार्य ज्ञानभूषण प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ । 455555555555555555555
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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