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________________ 95955959555555555555959 हार्दिक श्रद्धाञ्जलि मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि अवस्मिरणीय प्रशममूर्ति -आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) का स्मृति ग्रंथ का प्रकाशन । करने की योजना है। आपका यह प्रयास सफल हो ऐसा मेरा शुभाशीष है। LE -आचार्य श्री शांतिसागर जी (छाणी) महाराज सच्चे अर्थों में - आत्मानुसंधानी थे, तभी तो उन्होंने स्वतः दीक्षा धारण कर स्वावलम्बी मार्ग अपनाया। भगवज्जिनेन्द्रदेव के शुद्ध मार्ग को अपनाकर, रत्नत्रयधारी बनकर LE आत्महित के साथ-साथ यथासंभव परहित भी किया। मैं उनके प्रति अपनी हार्दिक श्रद्धाञ्जलि अर्पित करता हूँ। आचार्य शांतिसागर महाराज LE (हस्तिनापुर वाले) + हार्दिक श्रद्धाञ्जलि ___108 आचार्य प्रशममूर्ति श्री शान्तिसागर जी महाराज को आ. पार्श्वसागर - जी महाराज का सिद्धभक्ति, श्रुतभक्ति, आचार्यभक्तिपूर्वक सविनय नमोस्तु । आ. श्री का मेरे को प्रत्यक्ष दर्शन तो नहीं हुआ पर थोड़ा सा परिचय गुरू : आ. महावीर कीर्ति जी से जो प्राप्त हआ वह मैं लिख रहा हूं। आ. श्री ने बताया कि आचार्य शान्तिसागर एक अनुभवी सन्त थे, घोर तपस्वी थे, तेरापंथ आम्नाय के थे पर पंथ मोह नहीं था। आ. शान्तिसागर दक्षिण, आ. शान्तिसागर छाणी दोनों आचार्यों का चातुर्मास व्यावर में सेठ रामस्वरूप ने कराया था। दोनों आचार्य वात्सल्य रूप से रहे और कहते थे अपनी अपनी पद्धति के 4 अनुसार पूजा-पाठ करो। एक दूसरे पर टीका-टिप्पणी नहीं करना। हमें पंथों से क्या लेना-देना है। दिगम्बर मुद्रा पूजनीय है। आज जो पंथ व्यामोह चल रहा है वह कषाय पैदा करने वाला है। आचार्य शान्तिसागर दक्षिण आ. शान्तिसागर जी छाणी दोनों समकालीन आचार्य थे। दोनों की परम्परा अक्षुण्ण चल रही है। सभी साध आपस में प्रेम से रहें यही हमारी भावना है। आ. श्री प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 55454545454545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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