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________________ 4414141414144145146147144145146145 भ शास्त्रीय परिभाषाओं के अनुसार पुराण का अर्थ प्राचीन या पुराना है। TE इसमें प्राचीन-कथानक, वंशावली इतिहास भूगोल, ज्ञान-विज्ञान आदि सभी TE तत्त्वों का समावेश होता है। व्यक्ति या व्यक्तियों का चरित्र इनका प्रधान वर्ण्य विषय है। आदिपुराण में कहा गया है कि जिसमें क्षेत्र, काल, तीर्थ, सत्पुरुष TE एवं सत्पुरुषों की चेष्टायें वर्णित हों वह पुराण हैं।" रों में आचार्य रविवेण का नाम अत्यन्त आदर और । श्रद्धा के साथ लिया जाता है, उनकी एक ही कृति 'पद्मपुराण' या 'पद्मचरित' आज उपलब्ध हैं। आचार्य रविषेण का जीवन वृत्त अन्य प्राचीन कवियों की भाँति अन्धकाराच्छन्न नहीं हैं। पद्मचरित की पुषिका में उन्होंने अपने समय के - सन्दर्भ में कुछ संकेत दिये हैं उन्होंने लिखा है 'निशतान्यधिक समासहचे समतीतेऽर्थ चतुर्थवर्षयुक्ते। जिनभास्करवर्द्धमानसिद्धचरितं पदममनेरिवं निबद्धम।। अर्थात-जिन सूर्य भगवान महावीर के निर्वाण होने के 1203 वर्ष छह - 1 महीने बाद यह पदममुनि का चरित निबद्ध किया गया। यदि वीर निर्वाण से । 470 वर्ष बाद विक्रम संवत् प्रारम्भ माना जाये तो इस ग्रन्थ की रचना वि. LE सं. 734 (ई. सन् 677) में पूर्ण हुई चूंकि कवि की पदमपुराण' ही एक रचना - | उपलब्ध होती है, इसमें इस अनुमान को पर्याप्त आधार मिल जाता है कि यह उनके अंतिम समय की रचना होगी. अन्यथा इस प्रकार का प्रौढ़ विद्वान अपनी अन्य कोई रचना और रचता। अतः कवि का जीवन काल ईसा की सातवीं शती का उत्तरार्ध मानना समीचीन होगा। बाह्यसाक्ष्य भी इसी समय का समर्थन करते हैं। रविषेण के उत्तरवर्ती। - आचार्य पुन्नाटसंघीय जिनसेन ने अपने हरिवंशपुराण में रविषेण के पदमचरित -1 या पद्मपुराण की प्रशंसा की है "कृतपद्मोदयोद्योता प्रत्यहं परिवर्तिता। मूर्तिः काव्यमयी लोके रखेरिव रवः प्रिया।।" 7 अर्थात् आचार्य रविषेण की काव्यमयी मूर्ति सूर्य के समान लोक में प्रिय - है। जिस प्रकार सूर्य कमलों को विकसित करता है उसी प्रकार रविषेण ने - पद्म (रामचरित) को विकसित किया है। हरिवंशपुराण का समय वि. सं. 840 निश्चित है अतः रविषेण निश्चय ही उनसे पूर्ववर्ती हैं। प्रसममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ HEET-THEPाया
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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