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________________ 4545454545454545454545454545454545 एक अन्य उत्तरवर्ती आचार्य उद्योतनसूरि ने अपनी कुवलयमाला में है विमलसूरि के विमलांक (पउमचरिय-प्राकृत) और रविषेण के पदमचरित की 1. प्रशंसा की है "जेहि कए रमणिज्जे वरंग-पउमाणचरिय वित्थारे। कहव ण सलाहणिज्जे ते कइणो जडिय-रविसेणे।।" अर्थात् जिन्होंने रमणीय 'वरांगचरित' वा 'पद्मचरित' काव्य लिखे वे : रविषेण कवि कैसे प्रशंसनीय नहीं हैं? अपितु अवश्य ही प्रशंसनीय है। कुवलयमाला की रचना वि.स. 835 (ई. सन् 778) में हुई। अतः रविषेण का ITE समय इससे पूर्व ई. की सातवीं शती का उत्तरार्ध ही समीचीन है। आचार्य रविषेण किस संघ/गण/गच्छ के थे इसका उल्लेख उन्होंने नहीं किया है, किन्तु सेन नाम से इस अनुमान को पर्याप्त आधार मिल जाता है कि वे सेनसंघ के होंगे। यद्यपि श्री नाथूराम प्रेमी ने लिखा है कि-'नामों से संघ का निर्णय सदैव ठीक नहीं होता'' डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ने इन्हें सेन संघीय आचार्य माना है। पद्मचरित में निर्दिष्ट रविषेण की गुरु परम्परा निम्न हैइन्द्रसेन-दिवाकर सेन-अर्हतसेन-लक्ष्मणसेन-रविषेण जिस प्रकार रविषेण ने अपने संघ/गण/गच्छ का उल्लेख नहीं किया । है, उसी प्रकार अपने जन्म स्थान का भी उल्लेख उन्होंने नहीं किया है। पद्मचरित के अन्तःसाक्ष्य के आधार पर डॉ. नेमिचन्द्रशास्त्री ने उनके दक्षिणभारतीय होने का अनुमान लगाया है। वे लिखते हैं रविषेण ने पदमचरित के 42वें पर्व में जिन वृक्षों का वर्णन किया है, वे वृक्ष दक्षिण भारत में पाये जाते हैं। कवि का भौगोलिक ज्ञान भी दक्षिण भारत का जितना स्पष्ट और अधिक है उतना अन्य भारतीय प्रदेशों का नहीं। अतएव कवि का जन्मस्थान दक्षिण भारत का भूभाग होना चाहिए।" इसके विपरीत डॉ.ज्योतिप्रसाद जैन ने रविषेण को उत्तर भारतीय सिद्ध करने का प्रयास किया है। श्री रमाकान्त शुक्ल को लिखे अपने दि. 8-2-1966 के पत्र में वे लिखते हैं "रविषेण ने अपने ग्रन्थ में किसी स्थल पर भी अपने जन्मस्थान या निवासस्थान का संकेत नहीं किया है ......वैसे मेरा अनुमान है कि वह दक्षिण भारतीय नहीं थे। उत्तर में ही और बहत करके मध्यभारत में किसी स्थान प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ '440 557975454545454545454545454545455
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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