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________________ 5945955454545454545454545454545455 जयमाला शान्ति करें शान्ति धरै भौं भरमण काहि हरैया हैं। धर्म बढ़े मिथ्यात्व हर्ट ऐसो उपदेश करैया हैं।। ऐसे ही मुनिराज दास भव सागर तरण तरैया हैं। तिन गुण की जैमाल कछु नमि तिनके चरण कहैया हैं||1|| श्री शान्तिसागर मुनिवर उदार वसु कर्मन खण्डन को कुठार। मिथ्यात्व मोह तम हरण, बहु जैनधर्म उद्योत कार|12|| मेवाड़ प्रान्त पश्चिम बखान, जहं राज उदयपुर को सुजान। तहँ छाणी वर इक ग्राम जान, जो निकट केशरिया नाथ थान।।3।। तिह भागचन्द हुमड़ रहाय, मुनि शान्तिसागर तिन पुत्र आय। माणिकबाई माँ सती साध्चि, जिहि कुक्ष जन्म लिय शान्त्याब्धि ।।4।। उन जीवित गृह सों थे उदास, इतने पितुमा किया स्वर्गवास। जब तीस वर्ष की आय आय, तब शिखर क्षेत्र वंद्यो सजाय।511 तहँ ब्रह्मचर्य व्रत धार लीन, भे बाल यती नहिं व्याह कीन। ब्रह्मचारि रहै त्रै वर्ष जान, तब स्वप्ने पंच लखें सुजान ।।6 ।। मारत गो बांध्यो सिंह डाँट, बहु सूत माल दई जनन बाँट। पुनि काठ कमण्डल को लखाय, संघ ग्राम जनन जिन भवन जाय || फिर दर्शन श्री जिनराज कीन, तब क्षुल्लक व्रत को धार लीन। क्षुल्लक पद में गो कछुक काल, फिर पांच स्वप्न देखे दयाल ।।8। सरवर वारिज फूले महान, अरु देख्यो नाहर सिंह जान। पर्वत जिन भवन समेत वीर, अरु वृषभ श्वेत देख्यो सुधीर । 191 मस्तक पर सूखे कांट पेखि, तिन अग्नि लगी जरतेही देखि । तब मुनि मुद्रा लीन्हीं सुधार, इति भयो कार्य भव भ्रमण हार ||101 TE समये समये अजहुँ सुजान, होते शिक्षाप्रद स्वप्न ज्ञान। जासों अनुभव मुनि काहि होय, कछु ही दिन में ते फलित होय।।111 श्री मुनिवर इत उत करि विहार, जागृत करते निज धर्मसार। श्री मुनि को आवत सुनत कान, जुरि जैनाजैन आवत महान | |12||TA नर नारिन की जुरि भीर जाय, चहुँ दिश सों आवत हैं जो धाय। । प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 264 154545454545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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