SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 315
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 4545454545454545454545454545 लखि नग्न हो विस्मित अजैन, मुनि धर्म कहें जयकार बन||13|| जिन भव्यन भाग्य उदय कराय, ते करहि दरश मुनिराज आय। श्री मुनिवर के गुण हैं महान, करि कौन सकै तिनको बखान।।4।। तिन पद पावन रज हीय धार, वश भक्ति कछुक है कयो सार। सुत कन्हईलाल मुनि पद सरोज, भगवान दास नमै रोज रोज । 15 || LE कर जोरि करै विनती मुनेश, तुम पद रति हिय वर्त हमेश। जासों भव भरमण जाय छूट, वसु कर्मन बन्धन जायें टूट ।।6।। श्री मुनि गुणमाला अतिहि रसाला जे भविआला कण्ठ धरें। ते पुण्य संयोगी होयँ निरोगी बहु सुख भोगी मोक्ष वरें। इति जयमाला निर्वपामीति स्वाहा। जे वंदै मुनि शान्तिसागर हर्षाय के, सुनहि धर्म उपदेश सुचित्त लगाय के। तिन के रोग दुःख सब जायँ पलाय है, अन धन सत परिवार लछय सरसाय है।। इत्याशीर्वाद 265 प प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-प्रन्थ CLICICLEICICICIELSKIE FEEFIFIFIFIFTHAT
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy