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________________ 19494647494194554555544 अर्घ निर्वपानीति स्वाहा। 45945 षट् कायन के जीव तनी रक्षा करें। हित मित मीठे सत्य वचन मुख उच्चरें।। नहीं अदत्ता गहें ब्रह्मचर्यहिं धरें। पंच महाव्रत धारि परिग्रह परिहरें ।। ॐही पंचमहाव्रतपालकनीशान्तिसागरमुनिभ्यो अर्थ ||1|| भूमि देखते चलें वचन मीठे कहैं। एक बार दिन मांहि शुद्ध भिक्ष गहैं।। देखि उठावहिं धरहिं शास्त्र आदिक कही। मल मूत्रादिक करें भूमि लखि जीवनहीं।। ॐही पंचसमितिपालक-श्रीशान्तिसागरमुनिभ्यो अर्थ |1|| असपर्श रसना घ्राण नैना श्रोत्रहीं। इस भाँति सों जो पांच इन्द्री है कहीं।। करि तिन सब को दमन सुध्यान लगावहि। उपसर्ग परिषह परे न अंग डुलावहि।। ॐही पंचेन्द्रियदमनदक्षाटलध्यानधारकरीशान्तिसागरमनिम्यो अर्थ|3|| प्रतिक्रमण चन्दन स्तुती स्वाध्याय ही। कायोत्सर्गऽरु वनसुं समता भावही। षट् आवश्यक क्रिया मुनिन की जानिये। इनको मुनि नितहि करें परमानिये।। ॐही बटावश्यकक्रियापालक श्रीशान्तिसागरमुनिभ्यो अर्थ।।4।। करि नहान को त्याग दंत धौवे नहीं। केशलोंच भू शयन वस्त्र धारें नहीं।। एक बार लघु अशन खड़े आसन करें। शेष यही गुण सात मुनि पालन करें।। ॐ ही स्नान स्नानत्यागादिसप्तगुणपालकनीशान्तिसागरमुनिभ्यो अर्थ।।5।। इन अट्ठाइस मूल गुणन को जानिये। पालहि श्री मुनिराज भव्य परमानिये।। जल फल आदिक द्रव्य आठहु लायके। पूजिये जिनके पायं त्रियोग लगायके।। ॐ ही अगाईसमूलगुणधारकत्रीशान्तिसागरमुनिभ्यो पूर्णा,11611 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर भणी स्मृति-प्रन्या - 263 1959595959935999
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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