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________________ 154545454545454545454545454545455 म अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।। सुमना गंधकारी वेल निवारी मरुआ प्यारी चुनि कीजे। वर जुही गुलाबा कमल फुलावा भाल भरावा कर लीजे।। शान्त्याब्धि. ॐ हीं अष्टाविंशतिमूलगुणपालकपरमदिगम्बरमुनिश्रीशान्तिसागरमुनिभ्यो पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। रसगुल्ला रसाजे खुरमा खाजे मोदक ताजे कर लीजे। गोझाहि बनाई फेनि कराई थाल बनाई भरि दीजे।। शान्त्याधि................... .....|| 4 ॐ ही अष्टाविंशतिमूलगुणपालकपरमदिगम्बरमुनिश्रीशान्तिसागरमुनिभ्यो नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। घृत करपूर दीवा मणिन कहीवा भ्रम तम क्षीवा ले आई। जे बहु परकाशक मोह विनाशक ज्ञान विकासक सुखदाई।। शान्त्याधि .............. ............... || ॐ हीं अष्टाविंशतिमूलगुणपालकपरमदिगम्बरमुनिश्रीशान्तिसागरमुनिभ्यो दीपं निर्वपामीति स्वाहा। दश गंध लियाई चूर कराई अगिनि जराई गंध भरी। जसु धूम उड़ाई दश दिश छाई अलिगण आई नृत्य करी।। शान्त्याब्धि ............ ............... || - ॐ हीं अष्टाविंशतिमूलगुणपालकपरमदिगम्बरमुनिश्रीशान्तिसागरमुनिम्यो धूपं निर्वपामीति स्वाहा। बादाम छुहारा पिस्ता प्यारा गुछ नरियारा ले लीजे। सहकार अनारा नारंगि सारा सोने थारा भरि कीजे ।। शान्त्याधि............................ || 4. ॐ ही अष्टाविंशतिमूलगुणपालकपरमदिगम्बरमुनिश्रीशान्तिसागरमुनिभ्यो फलं निर्वपामीति स्वाहा। जल फल वसु द्रव्य इकठी सव्वै थाल भरव्वै कर लीजे। शुभ अर्घ बनाई भाव लगाई पूज रचाई जजि दीजे।। शान्त्याधि..... 51 ॐ अष्टाविंशतिमूलगुणपालकपरमविगम्बरमुनिश्रीशान्तिसागरमुनिभ्यो प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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