SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐 फफफफफफफ का एकत्रित हुआ जो सेठ जी के मिल में जमा कर दिया, जिसका वार्षिक ब्याज बराबर आता रहा। इस प्रकार इन्दौर एवं इन्दौर छावनी में समाज पर आपका पूरा प्रभाव छा गया। श्राविकाश्रम सागवाड़ा के लिये भी अच्छा आर्थिक सहयोग मिला। छावनी के पश्चात् फिर दोनों मुनिराज इन्दौर पांच दिन और रहे। और सारे वातावरण को धर्ममय बना दिया। इन्दौर से खण्डवा के लिए विहार किया । वहाँ पांच दिन रहे। श्राविका आश्रम के लिये आर्थिक सहयोग कराया। फिर वहाँ से खेरीधार होते हुए सिद्धवर कूट पहुंच गये। वहाँ आपके दर्शनार्थ सेठ कल्याणमल जी सकुटुम्ब इन्दौर से आये। यहाँ आप पांच दिन ठहरे। फिर वहाँ पुनः खण्डवा आये और वहाँ से विहार करते हुए बांकानेर धर्मपुरी होते हुए बड़वानी पहुंच गये। बड़वानी में उपसर्ग : बड़वानी पहुँचने पर आपका वहाँ धर्मोपदेश हुआ, जिसका जनता पर अच्छा प्रभाव पड़ा। जब आप ध्यानस्थ थे तो धर्मद्रोहियों ने आप पर मोटर चला दी। आप भयंकर उपसर्ग होने पर भी ध्यान मग्न रहे। ध्यान से किंचित भी विचलित नहीं हुए । मोटर चली नहीं और वहीं स्वयमेव टूट गयी। दूसरे दिन उन सभी मोटर चलाने वालों ने मुनिश्री से हाथ जोड़ कर क्षमा मांगी और कहा कि वे तो परीक्षा करने आये थे कि देखे जैन साधु कितने प्रभावक होते हैं। मुनिश्री ने उनको क्षमा प्रदान कर दी और कहा कि इसमें उनका कोई अपराध नहीं हैं मुनिश्री की निस्पृहता, उदारता एवं समताभाव देखकर सब आश्चर्य चकित हो गये। मुनिश्री ने बड़वानी पहाड़ की वन्दना की । वहाँ से पिपलिया, लोहारदा, सुसारी आये। लोहरदा में आपने उपदेश में जलेबी बनाना एवं खाना बन्द कराया। सुमारी से मोड होकर राणापुर पहुॅचे। यहाँ चार दिन रहे और सब श्रावकों के रात्रि भोजन का त्याग कराया। राणापुर से थानला, कुशला गांव होते हुए व अन्देश्वर पार्श्वनाथ तीर्थ पर आकर दो दिन तक तीर्थ वन्दना की। वहां से बनेजरा होकर बगोदरे आये और फिर गांवों में विहार करते हुए सागवाडा पहुंचे। वहाँ फिर पांच दिन ठहरे और डूंगरपुर होते हुए केशरियानाथ पहुंचे। केशरियानाथ में फिर उपसर्ग : केशरियानाथ में श्वेताम्बरियों ने आपको कहा कि पहिले कमण्डलु पहरेदार को दे दीजिये और फिर दर्शन कर आइये। यह विरोध तीन दिन तक बराबर चलता रहा, आपका यही कहना था कि कमण्डलु पहरेदार को प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ 197 1979795465 फफफफफफफफफफफ
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy