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________________ 11454545454545454545454545454545 4. नहीं दिया जा सकता। दिगम्बर साधु किसी के पराधीन नहीं हो सकते । अन्त ए में चौथे दिन मामला सुलझा और आप कमण्डल लेकर मंदिर में चले गये। आप कमण्डल को वेदी के ऊपर रखकर दर्शन करने लगे। इतने में पहरेदार LE आया और कामदार की आज्ञा से कमण्डलु को उठा ले गया। आपने इसे उपसर्ग माना और कहा कि जब तक कमण्डल वापिस नहीं आयेगा, तब तक उनके आहार पानी का त्याग है। लेकिन आध घण्टे के पश्चात वह पहरेदार पुनः आया और अपनी भूल स्वीकार करके कमण्डलु को वापिस वेदी पर रख दिया। उसके बाद ही आपने कमण्डलु लेकर आहार चर्या के लिये गये। इसके पश्चात श्वेताम्बरियों ने पूर्व पहरेदार को तो बदल दिया. लेकिन नये पहरेदार ने मुनिश्री के कमण्डल को फिर अपने हाथ में ले दिया। इसके बाद मनिराज एवं दिगम्बर जैन श्रावक मंदिर में ही आहार पानी का त्याग कर वहीं बैठ गये। लेकिन कुछ समय पश्चात् ही वह मुनीम फिर आया कमण्डलु को वापिस देने लगा। इस पर मुनिश्री ने कमण्डलु लेने से मना कर दिया और कहा जब तक उदयपुर से सरकारी हुक्म नहीं आवेगा वे कमण्डल नहीं लेंगे। क्योंकि बार-बार कमण्डलु लेने देने से धर्म की हंसी होती है। इसके पश्चात् कामदार C ने आपसे क्षमा मांगी और कमण्डलु वापिस दे दिया। मुनिराज तीन बजे आहार के लिये निकले। इतने में ही उदयपुर से भी आदेश आ गया जिसमें लिखा था कि कोई किसी को दर्शन करने को मना नहीं कर सकता है। इसके पश्चात् मुनिश्री कमण्डल सहित मंदिर में दर्शनार्थ गये। कमण्डल को वेदी पर रखा। दर्शन किये और आहार के लिये निकले। फिर आप वहाँ दो दिन ठहरे। किसी दिगम्बर मुनि के ऋषभदेव में आने का यह 50 वर्ष पश्चात अवसर आया है। भण्डारी ने बतलाया कि 50 वर्ष पूर्व इसी तरह मनि आये थे। उन्होंने भी कमण्डलु लेकर ही दर्शन किये थे। कोई रोक टोक नहीं हुई थी। ऋषभदेव में अपनी यश पताका फैला कर मुनिश्री खडक होते हुए TE सागवाड़ा आये। वहाँ से प्रतापगढ और वहाँ से मन्दसौर आये। वहां आपका का केशलोंच हुआ। इसके पश्चात् रतलाम आये। यहां पांच दिन तक ठहरे। नगर के बाहर जो प्राचीन मंदिर हैं उसके दर्शन किये। धर्मोपदेश दिया। रतलाम से बड़नगर आये वहां से बनेडिया जी आये। यह अतिशय क्षेत्र हैं। यहां पर तीन दिन तक ठहरे, अच्छी धर्म प्रभावना हई। इन्दौर में पंडित 4 जीवंधर जी शास्त्री को सरसेठ हुकमचंद जी ने एवं एक पंडित सेठ प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 198 999999965555559
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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