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________________ 955555555555555555555555555555 समाज को एक नयी दिशा प्रदान की। प्रतापगढ़ में उस समय समाज के 500 घर थे। आपके उपदेश से छाणी सरस्वती भण्डार की स्थापना के लिए 1700) रुपये का चन्दा हुआ। प्रतापगढ से अन्य छोटे-छोटे गाँवों में विहार करते हुए मुनिश्री जावरा T: पधारे। यहाँ आप तीन दिन रहे। यहाँ आपके पैर में बड़ी चोट लग गयी थी. 51 जिसके उपचार के लिये यहाँ के श्रावकों ने उपचार किये लेकिन उसमें कोई विशेष आराम नहीं मिला। मुनिश्री ने असातावेदनीय का फल मानते - - शान्तिपूर्वक सहन कर लिया और वहां से विहार करते हुए चन्द्रावत पहँच 5 गये । यहाँ आपको एक मुनि और मिल गये जिनका नाम मुनि चन्द्रसागर जी LC महाराज था। वहॉ मुनि श्री चन्द्रसागर जी का केशलोंच था। इसलिये बहुत से श्रावकगण एकत्रित हुए थे। आपका वहाँ प्रभावक उपदेश हुआ, जिसका बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा और श्रावकों को व्रत नियम आदि देकर कितनी ही बुराईयों का त्याग कराया। इन्दौर की ओर विहार : - वहाँ से दोनों मुनियों ने साथ-साथ इन्दौर की ओर विहार किया। इन्दौर में सर्वप्रथम मल्हारगंज की नशियां में ठहरे। वहाँ सर्वप्रथम वहां के प्रसिद्ध सरसेठ हुकमचन्द जी के यहाँ आहार हुआ। वहाँ 5 दिन ठहरने के पश्चात् एक दिन के लिये छावनी गये। सर्वप्रथम छावनी में सरकार ने नग्न मुनि के विहार के लिये मना कर दिया तो सरसेठ हुकमचन्द जी ने एवं समीरमलजी ने सरकार से आज्ञा प्राप्त करके मुनिराजों का निर्विघ्न विहार करायां वहाँ से तुकोगंज गये और फिर लश्करी मंदिर में ठहरे। यहॉ फिर दोनों ही मुनिराजों के सरसेठ साहब के घर आहार हआ जिसके उपलक्ष्य में सेठ हुकमचन्द जी ने 1000)रुपया 50x0)रुपया सेठ कल्याणमल जी ने, 500)रु. गेंदालाल जी सूरजमल ने, 600)रु फतेह जी की धर्मपत्नी ने तथा 600)रुपया गम्भीरमल चुन्नीलाल राय पीपलीवाला ने शान्तिसागर श्राविकाश्रम सागवाड़ा के लिये दान दिया। इसके पश्चात् आपका मल्हारगंज की नशियाँ में केंशलोंच हुआ। सर सेठ सा. ने मुनिश्री की साधना की बहुत प्रशंसा की और फिर 1000)रुपया श्राविकाश्रम को दान दिया। आपके अतिरिक्त सेठ कल्याणमल जी, सेठ + कस्तूरचन्द जी आदि ने भी दान दिया। पूरा आर्थिक सहयोग 7000 रुपया भ 1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 196
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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