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________________ 55555旡55555555555555555 卐555555555555555 ओर प्रथम कदम था। इसके पश्चात् तो उनका जीवन ही बदलने लगा । केवलदास नौकरी भी करते। स्वयं का रोजगार भी करते और स्वाध्याय के लिए भी समय निकाल लेते इस प्रकार छोटी अवस्था में वे अत्यधिक व्यस्त रहते और घर में रहते हुए भी जल में कमल के समान निर्लेप भाव से सारी क्रियायें करते रहते। उनकी कुशाग्र बुद्धि एवं व्यवसाय के प्रति लगाव देखकर गाँव के लोग उनके पिता को बालक के अच्छे भविष्य की आशा बँधाते और उसे घर का दीपक कहकर बालक केवलदास का भी उत्साह बढ़ाते । केवलदास शास्त्र स्वाध्याय में अधिक मन लगाते थे। वे स्वयं तो स्वाध्याय करते ही थे किन्तु जब दूसरे व्यक्ति शास्त्र स्वाध्याय करते तो उनकी सभा में भी श्रोता बनकर बैठ जाते। कहते हैं, एक बार जब उसी गाँव के पं. रूपचन्द पंचोली नियमित स्वाध्याय करते थे तब युवा केवलदास उनसे प्रभावित हुए और वहाँ जाकर प्रतिदिन शास्त्र सुनने लगे। इस प्रकार धीरेधीरे आपका ज्ञान बढ़ने लगा और वे विरक्ति की ओर बढ़ने लगे। तीर्थ वन्दना की और भी उनकी इच्छा होने लगी और पास ही के तीर्थ केशरियाजी जाने का निश्चय कर लिया। केशरियाजी में भगवान ऋषभदेव की भव्य प्रतिमा के दर्शन करके अपने भाग्य को सराहने लगे। वे दर्शनों में तन्मय हो अपने जीवन की ओर झाँकने लगे। उन्हें लगा कि गृहस्थ जीवन मनुष्य के लिए स्वरूप है। स्त्री, पुत्र सभी संसार बढ़ाने वाले हैं। उनसे जो सुख 1 है, वह तो क्षणिक सुख है, जिसका कभी भी विनाश हो सकता है। इस प्रकार चिन्तन में डुबकी लगाकर केवलदास ने वहीं आजन्म विवाह नहीं करने तथा दिन में एक बार ही भोजन करने का नियम ले लिया । भार मिलता वैराग्य की ओर उनका यह पहिला कदम था। जब केवलदास भगवान् के दर्शन करके घर पर लौटे तो वह प्रसन्नचित्त थे, मानो उनके ऋषभदेव ऊपर से गृहस्थी का सारा भार उतर गया हो । मिली जब उनके माता-पिता को अपने पुत्र द्वारा ली गई प्रतिज्ञा की जानकारी तो सभी सन्न रह गये और भविष्य में गृहस्थी की गाड़ी कैसे चलेगी इस पर विचार करने लगे। उन्होंने अपने पुत्र को तरह-तरह से समझाया, डाँट-डपटा, भला-बुरा कहा तथा माँ-बाप के आदेश की अवहेलना के लिए भी दोषी ठहराया लेकिन केवलदास पर उनके कहने-सुनने का कोई असर नहीं हुआ। आखिर माता-पिता रो-धो कर रह गये। उन्होंने आजन्म अविवाहित 152 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ 7-5455 फफफफ! 5555555555555555
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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