________________
HMMM.
* AKKAR
-* १
वृहज्जैनवाणीसंग्रह | मैं भ्रम्यो अपनपो विसरि आप। अपनाये विधिफल * पुण्य पाप । निजको परको करता पिछान । परमें अनिष्टता। * इष्टि ठान ।।९।। आकुलित भयो अज्ञान धारि। ज्यों मृग
मृगतृष्णा जानि वारि ॥ तनपरणपतिमें आपो चितार।। * कवहूं न अनुभयो स्वपदसार ॥ १० ॥ तुमको
विन जाने जो कलेश। पाये सो तुम , जानत * जिनेश । पशुनारकनरसुरगतिमझार । भव धर धर मरयो । * अनंत वार ॥११।। अब काललब्धिवलत दयाल। तुम दर्शन पाय भयो खुश्याल || मन शांत भयो मिटि सकल द्वंद ।। चाख्यो स्वातमरस दुखनिकंद ॥१२॥ तातै अब जैसी करहु । नाथ । विछुरै न कभी तुअ चरण साथ ॥ तुम गुणगणको नहिं छेव देव । जग तारनको तुअ विरद एव ॥१३॥ आ
तमके अहित विषय कषाय ! इनमें मेरी परिणति न जाय ॥ । मै रहूं आपमें आप लीन । सो करो होउ ज्यों निजाधीन।
॥१४॥ मेरे न चाह कछु और ईश । रत्नत्रयनिधि दीजै मुनीश ॥ मुझ कारजके कारन सु आप। शिव करहु, हरहु मम
मोहताप ||१५|| शशि शांतकरन तपहरन हेत । स्वयमेव * तथा तुम कुशल देत॥ पीयतपीयूष ज्यों रोग जाय । त्यों तुम * अनुभवतें भव नशाय ॥१६॥ त्रिभुवन तिहुंकाल मंझार * कोय । नहिं तुम विन. निज सुखदाय होय ॥ मो उर यह * निश्चय भयो आज । दुखजलधि उतारन तुम जिहाज ॥१६॥ * दोहा-तुमगुणगणमणि गणपती, भणत न पावहिं पार। 'दौल' स्वल्पमति किम कहै, नमूं त्रियोग संभार ॥
RAKASKRIS K R -*