________________
१ २२६
हज्जैनवाणीसंग्रह चूरै, ठारह जन्मन मरन मुंन । एक समय उनईस परीसह, बीस प्ररूपनिमै निपुणं ॥ भाव उदीक इकीसों जानें, वाइस अभखन त्याग करं । अहिमिदर तेईसों वेदै, इन्द्र सुरग । चौवीस वरं ॥५॥ पच्चीसों भावन नित भावें, छब्बिस अंग उपंग पढ़ें । सत्ताईसों विषय विनाशैं, अट्ठाईसों गुण । सु पढें । शीत समय सर चौहटवासी, ग्रीषमगिरिशिर जोग
धरं । वर्षा वृक्ष तरै थिर ठा, आठ करम हनि सिद्ध वरं ॥६॥ * दोहा-कहों कहालों भेद मैं, बुध थोरी गुन भूर। * 'हेमराज' सेवक हृदय, भक्ति करो भरपूर ॥७॥ ओं ही आचर्योपाध्यायसर्वसाधुगुरुभ्यो अयं निर्वपामीति स्वाहा।
९९-अकृत्रिम चैत्यालयपूजा । * आठ किरोड़ रु छप्पन लाख । सहस सत्यावण चतुशत भाख ।
जोड़ इक्यासी जिनवर थान । तीनलोक आह्वान करान ॥
ओं ही ब्रलोक्यसंवंध्यष्टकोटिषट्पचाशलझसप्तनवतिसहस्रचतुःशतका* शीति अकृत्रिमजिनचैत्यालयानि अत्र अवतरत अवतरत । संवौषट् । *ओं ही त्रैलोक्यसंबंध्यष्टकोटिषट्पंचाशलझसप्तनवतिसहस्रचतुःशतकाशीति है। * अकृत्रिमजिनचैत्यालयानि अत्र तिष्ठत तिष्ठत । ठः ठः । ओं हो त्रैलो
क्यसंबंध्यष्टकोटिपटपंचाशलक्षसप्तनवतिसहस्रचतुःशतकाशीति अकृत्रि। मजिनचैत्यालयानि अत्र मम सन्निहितो भवत भवत । वषट् ।
क्षीरोदधिनीरं उज्ज्वल सीरं, छान सुचीरं, भरि झारी ।। अति मधुर लखावन, परम सु पावन, तृपा बुझावन, गुण भारी ॥ वसुकोटि सु छप्पन लाख संत्ताणव, सहस चार
- -- -