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________________ आस्रव और बंध तत्व। [१४७ आरम्भ करना । (२) अल्ल परिग्रह-न्यायसे परिग्रहको एकत्र करनेमे संतोप रखना । (३) विनयरूप स्वभाव रखना। (४) स्वभावसे भद्र होना । (५) सरलतासे व्यवहार करना । (६) मंदकपायसे संक्लेश भाव रहित मरण करना।। (९) देव आयु बंधके विशेष भाव (१) सराग संयम-मुनिका चारित्र पालना, (२) संयमासंयम-श्रावकके बारह व्रत पालना । (३) अकाम निर्जरा-समताभावसे बन्धनका, भूख प्यासका, रोगादिका दुःख सहन करना। (४) चालतप-मिथ्या दर्शन सहित आत्मानुभव रहित कायक्लेश करते हुए बहुत तर करना । (५) सम्यक दर्शन-आत्मतत्व आदि सात तत्वोंमें दृढ़ श्रद्धान रखना । नोट-त्रा रहिन भी सम्यग्दृष्टी स्वर्गमें जाने लायक देवायुका बन्ध करता है । जो सम्यकदर्शनसे रहित हो और बाहरी वन मंयम पाले तो वह भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिपी देवोंमें भी पैदा होसता है व फार नौग्रैवेयिक तक भी जासक्ता है। (१०) अशुभ नाम कर्मके बंधके विशेष भाव-(१) योगवक्रता-मन वचन कायको वक्र या कुटिल रखना, मायाचार सहित वर्तना, दूसरोंको चिड़ाना, नकल करना, (२) विसम्बाद--जो कोई शुभ कामों को करता हो उसको झगडा करते हुए मना करना व परस्पर बकवाद व गाली देते हुए लडना, (३) मिथ्यादर्शन, (४) पैशून्य चुगली करना, (५) अस्थिर चित्तता--मनकी चंचलता, (६) ऋट मान तुला काना-झूठे बांट गन रखना (७) परनिंदा, (८) आत्म प्रशंसा। (११) शुभ नाम कके वन्य विगेपभाव --(१, योग
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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