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________________ " [१२] पाच शरीर .. ....१२१ उत्कर्षण, अपकर्ण, मक्रमण छठा अध्याय। और उदीरणा ....१५९ अजीव तत्व .... ....१२४ आठवां अध्याय । पुद्गलके छ भेदः ... ...१२५ संवर निर्जरा मोक्ष ....१६० पाच प्रकार उपयोगी वर्गणा १२६ दशधर्म .. .... ....१६३ -परमाणुमोंके बधका हिसाब १२७ बारह भावना ... ....१६४ प्रदेशका लक्षण .... ....१२९ बाईस परीषह ... ....१६६ छः सामान्य गुण ...१३१ पाच चारित्र ... ....१६७ सातवां अध्याय । बारह तप ... .... आश्रव और बंध तत्व ... १३३ पिडस्य ध्यान ... ... १६९ आयुकर्मका बध कैसे .... , पदस्थध्यान ... ....१७१ कर्मों में स्थिति अनुभाग ....१३५ रूपस्थ ध्यान ... .. १७२ बधके पाच कारण भाव ... , रूपातीत ध्यान .... ... " पाच प्रकार मिथ्यात्व ....१३६ शुक्लध्यान ... ... " - बारह अविरति भाव ....१३८ नवमा अध्याय । पंद्रह योग ... ....१३८ श्रावकोंके माचार . १७४ जीवोंके १०८ भाव ... १४१ पाच व्रतोंकी २५ भावनाए, ,, अजीवके ११ आधार ....१४२ पाच अणुव्रत .... ...१७८ कर्मबन्धके विशेष कारण १४३ तीन गुणव्रत ... ... १८१ षोड़श कारण भावना ....१४८ चार शिक्षाबत .... ...१८२ कर्मोंके १४८ भेद ....१५० सामायिक विधि .... ....९८३ कर्मोंकी स्थिति : . .. १५४ प्रोषधोपवासके तीन भेट... १८५ अनुभाग बन्धके दृष्टात . १५५ १७ नियम .... .... " कर्मके फल देनेकी विधि... , सम्यग्दर्शनके मतीचार ...१८७ कर्मके पलटनेके उपाय ...१५९ बारह ब्रतोंके अतिचार ....१८८
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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