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________________ ! १३] ग्यारह प्रतिमाओंका स्वरूप १९१ न्याय दर्शन .... ....२६६ दशवां अध्याय । वैशेषिक दर्शन .... ....२६८ जनोंके भेद .... . १९६ साख्य दर्शन .... ...२६९ महावीरस्वामीकी नग्न दीक्षा २०० योग दर्शन .. ...२७३ दि० श्वे० की साम्यता ...२०९ पूर्व मीमासा .... ....२७४ ग्यारहवां अध्याय। उत्तर मीमासा .... ....२७५ जैन और बौद्ध धर्म ....२२२ विशिष्टाद्वैत २७७ गौतम बुद्ध जैन मुनि .. २२२ शुद्धाद्वैत ... २७८ पिहिताश्रव पिथ गो स जेनी २२३ द्वैत .... ... .. २७९ यौद्ध प्रथोंमें मोक्षका स्वरूप २२८ थियोसोफी , आत्माका स्वरूप२२९ आर्यसमाज ... . .२८० मोक्षमार्ग ....२३१ ईसाई मत .... ....२८१ कर्मबन्ध ....२३४ , में अहिंसा ....२८३. , महिंसा ...२३९ , में आत्म निर्वाण २८४ , मांस निषेध ....२३६ , में मांस निषेध २८७ वारहवां अध्याय । , में बलि निषेध ....२८८ भगवद्गीता और जैनधर्म २४५ पारसी धर्म ......, गीतामें भकर्तावाद व मुसलिम धर्म .... ....२९१ साख्य मत....२५६ , में दया ....२९४ , वेदांत मत ....२६० , में शाकाहार , तेरहवां अध्याय में बलि निषेध २९९जनधर्म और हिंदू दर्शन ....२६६
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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