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________________ चौबी० अर्घ-शुभ वारि सौरभ श्वेत अक्षत पुष्प चरुवर पावने, बहु दीपधूप फलौघ सुंदर अर्घ करत सुहावने । पूजन नृप नाभिराय जुबंश नभमें इंदु ऋषभ ज़िनंदही। पूजूंसुहित कर चरण अंबुज हरत जगके फंद ही। ... डों ह्रीं श्री ऋषभनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ ४४६ । . पद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥ . अथ पंचकल्याणक । छंद त्रोटक। गर्भ-शुभ बीज असाढ सुहात अली, जिन गर्भ विषे तिथ आनरलो। पित मात तबै, नुत इंद्र जजे, तिहुँ लोक विषे सुर ढुंद बजे। ह्रीं श्री ऋषभनाथ जिनेन्द्राय आषाढ कृष्ण द्वितीया गर्भ, कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । जन्म-कल नवमी मास सुचैत कहा, ऋषभेश्वरने तब जन्म लहा। अमरेश जजै गिरि मेरु तबै, हम पुजत पातक नाश अबै। ह्रीं श्री ऋषभनाथ जिनेन्द्राय चैत्र कृष्ण नवमी जन्म कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । तप-अलि चैत सुनवमी पर्वबरा, प्रयाग अरन्य सयोग धरा। चिद रूप वि तब निजथान गये। रों ह्रीं श्री ऋषभनाथ जि . अर्घ निवपामीति स्वाहा॥
SR No.010573
Book TitleVarttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBakhtavarsinh
PublisherBakhtavarsinh
Publication Year
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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