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________________ चौबी० नृप नाभिराय जुवंश नभ में इंदु ऋषभ जिनंदही,पूजू सुहित कर चरणअंबुज हरत जगके फंद ही। - ॐ ह्रीं श्री ऋषभनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ संग्रह दीप-दीपक प्रजारे तम निवारे थाल में अजि जग मगे, तिस देखते भयभीत ढेकर तम अज्ञान सबै भगे। नृपनाभिराय जुबंश नभ में इंदु ऋषभ जिनंदही, पूजूसहित करं चरण अंबुज हरत जगके फंदही। . ह्रीं श्री ऋषभनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय' मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । ". धूप-दश गंध चूर सुगंध सौरभ दशोंदिश में है रही, तिस धूमते अलिबंद छाये नील घन शोभा लही। नृप नाभिराय जुबंश नभ में इंदु ऋषभ जिनंद ही, पूजूंसुहित कर चरणअंबुज हरत जगके फंदही। डों ह्रीं श्री ऋषभनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अष्ट कम दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ .. फल-एला सुकेला आम्र दाडिम कैंथ चिरभट लीजिये,भरथाल ल्याए चरन के ढिग मोक्ष श्रीफल दीजिये . नृपनाभराय जुबंश नभ में इंदु ऋषभ जिनंद ही, पूजू सु हितकर चरणअंबुज हरत जगके फंदही। ओं ह्रीं श्री ऋषभनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा॥.. . .......
SR No.010573
Book TitleVarttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBakhtavarsinh
PublisherBakhtavarsinh
Publication Year
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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