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________________ वर्द्धमान सदावगाहक्षत' वारि-राशि मे प्रचंड थे भानु सहस्र-भानु के, नितान्त दुष्प्रेक्ष्य प्रतप्त व्योम था महान-कोपाकुल-भूप-आस्य-सा । (५) कही घने भू-रुह नीप' क तले मयूर बैठे दिन काटते लसे, कही किसी शादलों में विराजते कुरग थे सग रंगिनी लिये । अरण्य के माहिप पंक जान के स्वकीय छायाश्रय ढूंढने लगे, अलक्त गुंजा लख रक्त-बुन्द-सी स-भ्रान्ति थे वायस चंचु डालते । (७) करेणु खाता फल सल्लकी मुदा, वरेणुका थी उसको खिला रही, समीप ही वारण गर्जते हुये वना रहे कानन शब्द-युक्त थे । । मदा नहाने के कारण उच्छल । कठिनता से देखा जान वाला। 'तमाल । 'हरी-भरी भूमि । 'हाथी का बच्चा। 'हयिनी।
SR No.010571
Book TitleVarddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnup Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages141
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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