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________________ छठा सर्ग १७६ ( २४ ) "विरक्त हो कामुक जो महान है, निरीह है, इच्छुक है अवश्य जो, नरेन्द्र-जाये । त्रिशले शुभे । अहो । कहो परात्मा प्रभु कौन विश्व मे । ( २५ ) "अदृष्ट है कौन, तथापि दृष्ट है ? स्वभाव से निर्मल कौन लोक में ? महार्ह' है किन्तु न देव-रूप है ? दयार्द्र है, देह-दया-विहीन है ?" ( २६ ) नपालिका ने सब प्रश्न यो सुने, दिया नही उत्तर व्यक्त रूप से, परन्तु होके नत-लोचना मुदा विलोकने कुक्षि लगी मदालसा । ( २७ ) "अगाध-संसार-पयोधि मे, शुभे । न डूबने दे वह पोत' कौन है ? नपाल-भार्ये । कृपया बताइए,-- "वहित्र अर्हत-पदारविन्द का"। __'इच्छा-हीन । महँगा, दुर्लभ । 'नाव । 'जहाज ।
SR No.010571
Book TitleVarddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnup Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages141
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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