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________________ १७८ यद्धमान "जगो, जगो, देवि प्रभात हो गया, उपा गमान्ट हुई निगान्त प, जगज्जयी फेवल एक काल है, अत उठो, है समयानुवनिनी' ।" ( २१ ) सुनी नु-वाणी मग्नि-वृन्द की मुदा जगी मनोगा निगला प्रभात में परन्तु गोनर्नु उपा-नमान ही अनन्प' लेटी निज नल्प' में रही। (२२) कठोर-गर्भा निगला विलोक के म-प्रेम आयी मसियां ममतत , मनोन प्रश्नोत्तर से न-मोद वे लगी रचाने वहलाव चित्त का। ( २३ ) दिवौकमी, मन्दरि, छद्मवेपिणी स-नर्क गका करने लगी सभी, जिनेन्द्र-गर्भ-स्थित है कि अन्यथा लगी परीक्षा करने अनेकश । 'समय के अनुसार अनुवर्तन करनेवाली। बड़ी देर । "झूला ।
SR No.010571
Book TitleVarddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnup Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages141
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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