SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४६ वर्द्धमान ( २८ ) शशाक प्रत्येक निशान्तराल' में स्वकीय गाथा कहता धरित्रि से, कि जन्म कैसे इस पिंड का हुआ, कि कीति कैसे बढती सु-कर्म से । ( २९ ) प्रपूर्ण राकेश नमो-निकुज से विकीर्णर जोत्स्ना करता समतत , समीर मानो गति से शने शनैः प्रगाढ निद्रावश हो रहा, अहो ( ३० ) शशाक-जोत्स्ना चलती सुमेरु से महीरुहो से छनती धरित्रि में, नदी बहाती तल मे प्रकाश की, वढा रही प्रेम निशा ललाम से । ( ३१ ) उगा नही चद्र, समूढ प्रेम है, न चाँदनी, केवल प्रेम-भावना, न ऋक्ष है, उज्वल प्रेम-पात्र है, अत हुआ स्नेह-प्रचार विश्व मे । 'रात्रि के मध्य का समय । 'प्रसरित ।
SR No.010571
Book TitleVarddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnup Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages141
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy