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________________ वर्तमान ( २७ ) नरेन्द्र भी यौवन-युक्त है तथा वधू महा-प्रीट-पयोधरा लमी, इसीलिए सगम-लालसान्विता तरगिणी-सी विशला लमी तभी। (२८ ) कदम्ब मे मुग्ध-लसे प्रसून है, प्रसून मे मजु मरद' सोहता, मरद मे लुब्ब मिलिन्द-यूय है, मिलिन्द मे भी मदनानुभूति है। ( २९ ) प्रहृष्ट है कामुक चक्रवाक भी, प्रकृप्ट नृत्यादित' है कपोत भी, प्रकर्प को है पिक प्राप्त हो रहे, पिकी, कपोती, लख, चक्र-वालिका। पयोद गजें, जल-धार भी गिरे, तडिल्लता' अवर मे अशान्त हो, महीप को क्या भय था, निकेत मे प्रिया महा ओपधि-सी विराजती। - 'पराग। नृत्य से तरल चित्त। 'विजली।
SR No.010571
Book TitleVarddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnup Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages141
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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