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________________ दूसरा सर्ग ७६ ( २३ ) पयोद जैसे निज दान-मान से बना रहे मुग्ध मयूर-वृन्द को, तथैव कदर्प स्व-मान-दान से बना रहा उग्र युवा-समूह को। ( २४ ) अनेक-रागान्वित, स्थैर्य-हीन भी, अजस्र दुष्प्राप्य, गुणादि-हीन भी, नवागना के रस-सिक्त चित्त-सा बना रहा प्रावट इन्द्र-चाप को। ( २५ ) लखो, महा धूसर धूलि से हुआ प्रमोद देता किसको न खेल से, स-पुत्रिका के पट-सा विलोकिये, मलीन है अवर वारि-वाह से । ( २६ ) महान वर्षा यह हो रही, लखो, सु-वर्ष से वासर दीर्घ हो रहा, सभी दिशा, नीर-तरग-युक्त है, महीप क्यो नीरत-रग हो नही । रग-युक्त । वर्षा-ऋतु । 'पुत्रवती । वर्षा अथवा वर्ष । 'काम-हीन ।
SR No.010571
Book TitleVarddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnup Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages141
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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