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________________ ५२८ वर्द्धमान ( १२ ) प्रभात से ही नर-नारि-वृन्द मे हुआ समुद्वेलित सिवु हर्ष का, उठी डुबोती गृह-कार्य सर्वग अनुप-आनद-तरग चित्त में। ( १३ ) मनोज्ञ ग्रामोत्तर मे प्रसिद्ध थी जहाँ महासेन-समास्य' वाटिका वही रुके जाकर देवं प्रात मेमिला समाचार समस्त ग्राम को। ( १४ ) तुरन्त नारी-नर का समाज भी चला कृतारण्य समीप मोद मे, न साधु ऐसा, इस ग्राम मे कभी यती न आया प्रभु-सा प्रसिद्ध था। ( १५ ) विलोक शोभा वदनारविन्द की, निहार आभा प्रभु-अग-अंग की, वखानते थे सब एक-कठ हो कि मूर्तिमाना तप-सिद्धि आ गयी। "महासेन' इस सुन्दर नाम की। 'उद्यान ।
SR No.010571
Book TitleVarddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnup Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages141
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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