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________________ ५१३ सोलहवां सर्ग ( ८० ) खडा रहा स्यदन एक याम यो जिनेन्द्र लौटे संग दिव्य शक्ति के, प्रकाश के अवर मे छिपे हये सु-व्यक्ति दोनों द्रुत एक हो गये। ( ८१।) कुबेर ने सत्वर ही जिनेन्द्र को शताग मे सादर ज्यो बिठा लिया, कि त्यो लगे स्यदन-चक्र धूमने तुरग देवालय-द्वार से मुडे । ( ८२ ) शताग-चक्राहत-व्योम-मार्ग मे प्रदीप्त होने वहु भस्मनी' लगी पुन पुन. वचिष' व्योम-चचिनी स्फुलिंग-माला बहु फेकने लगी। ( ८३ ) यथा-यथा स्यदन व्योम के तले चला महा आतुर तीन चाल से तथा तथा तारक उच्च धाम के हुये परिक्षाम' प्रकाश-विन्दु-से । 'किरणे, लपटे । अग्नि । 'दुवले ।
SR No.010571
Book TitleVarddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnup Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages141
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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