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________________ तीपंकर भगवान महावीर वात्सल्य प्रेम गया दार्शनिक विचार इतने सरल और प्रभावोत्पाबक शैली में लिखे गए हैं कि पाठक उससे प्रभावित हुए बगेर नहीं रह सकता। अन्त में मैं इतना और कहूँगा कि प्रापकी रचना पाठकके अन्दर रसोद्गार करने में सफल हुई है और यही सफल काव्य का सबसे बड़ा गुण है।" (पत्र ता० २८-३-६०) माननीय सौभाग्यमल जी जैन,भूतपूर्व मंत्री मध्यप्रदेश, शुजालपुर"मैंने पापके द्वारा रचित 'तीर्थकर भगवान महावीर' काव्यात्मक पुस्तक का प्रायोपान्त अवलोकन किया । वास्तव में इस रचना में प्रापकी काव्य-साधना सफल हुई है । मेरे चित्तको बड़ी प्रसन्नता हई। पाठकों को जहां भगवान महावीर के जीवन सम्बन्धो घटनामों को जानकारी प्राप्त होगो, वहां साथ २ काव्य का रसास्वादन का प्रानन्दका प्राप्त होगा। मेरी हार्दिक कामना है कि पापकी काव्य प्रतिभा का खूब विकास हो ताकि प्राप माता सरस्वती की सेवा के द्वारा जैन साहित्य को और अधिक श्री वृद्धि कर सकें।" (पत्र ता०३०-६-५९) भी यशपाल जी जन सम्पादक'जीवन-साहित्य'बिल्ली___ "चि. वीरेन्द्र के 'तीर्थकर भगवान महावीर' काव्य की प्रति यका समय मिल गई थी। मुझे खेद है कि मैं उसकी पहुँच न दे सका। कुछ भाग-दौड़ में रहा । पर पुस्तक पर मैं निगाह डाल गया है वह मुझे बहुत रुचिकर हुई है। बड़ी ही प्रांजल भाषा में उसमें भगवान महावीर के चरित पर प्रकाश डाला गया है। काव्य की शैली माकर्षक है और उसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उसमें कवि की वाणी-विलास नहीं है, एक उदात्त भावना है। मुझे विश्वास है कि इस लोकोपयोंगी कृति का सर्वत्र मावर होगा और उसके पठन-पाठन से बैन ही नहीं, नेतर समाज भी साभान्वित होगा। भाई वीरेन्द्र को मेरी भोर से बचाई दीजिये।" (पत्र सा० १६-१०-११)
SR No.010568
Book TitleTirthankar Bhagwan Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendra Prasad Jain
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1965
Total Pages219
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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