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________________ शुभ सन्देश और सम्मतियां । ग. महेन सागर प्रचंडिया, एम०ए०,पो०एच००, भागरा- ..... ... "तीर्थकर भगवान महावीर' विचारों का विश्व विद्यालय है। कवि को अपने उद्देश्य में अभूतपूर्ण सफलता मिली है। शंलोगत सौन्दर्य ध्वन्यात्मकता, स्पष्टवादिता पोर प्रवाह-पटुताकृति का अनोखा माकर्षण है । कला और भाव पक्ष की दृष्टि से प्रस्तुत रचना एक सफल लघु महाकाम की कोटि में परिगणित की जानी चाहिए । कवि की लेखनी में हिन्दी वाङ्गमय को इसी प्रकार सर्वोदयी एवं पूर्ण सामग्री से सम्बदित करने को पूर्ण क्षमता है।" . (बिना तारीख का पत्र) विद्यावाचस्पति श्री शिवनारायण जी सक्सेना,एम.ए., सिदान्तप्रभाकर, मेघनगर"पाठ सों में भगवान महावीर का जीवन चरित् जिस कुशलताके साथ भाई श्री वोरेन्द्र प्रसाद जैन सम्पादक 'पहिंसावाणी' ने 'तीर्थकर भगवान महावीर' नामक प्रबन्ध काव्य अन्य में गूप दिया है, उसे पढ़ते ही बनता है। काव्यमें भाव वित्रए, विषय का निर्वाह, साहित्यिक भाषा तथा सरसता जैसे अनेक गुरण स्वाभाविक रूप से मा गये है। भगवान को इसमें बाल. ब्रह्मवारी के रूप में दिखाया गया है। क्योंकि अन्धकार को भगवान का यहीं स्वरूप सदेव से प्रिय रहा है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह कृति कवि की काम्य प्रौढ़ता एवं विद्वता की भी मन्तिम छाप पाठक पर छोड़ देती है । यद्यपि भगवान महावीर के जीवन को ही इस काव्य का विषय बनाया गया है फिर भी जन्म उत्सव, शिशु वय, किशोर वय, तरुणाई, विराग केवल ज्ञान तथा निर्वाण से उपयोगी स्थलों पर लेखनी चलाकर इस बात का निरन्तर प्रयास किया है कि अंसना में कोई बापान पड़े। हिंदी साहित्य में जो यह मनोहर काम्य मिला नया उसके लिए मैं कवि को बधाई देता साप ही यह भी विश्वास
SR No.010568
Book TitleTirthankar Bhagwan Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendra Prasad Jain
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1965
Total Pages219
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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