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________________ __ "सन्ति एगेहिं भिक्खुहि गारत्था संजमुत्तरा" ___ अर्थ-"बहुत से कुसाधुओं की अपेक्षा संयमी गृहस्थ उत्तम होते हैं"। सारांश यह है कि गृहस्थ जीवन में भी मोक्ष की साधना की जा सकती है और मर्यादित संयम धारण किया जा सकता है। सूत्रकारों के इस उदार आशय को लक्ष्य में रखकर यहां उस शैली का उपयोग किया गया है जो साधु एवं गृहस्थ इन दोनों को समान रूप से लागु पड़ती है। [भाषादृष्टि ] भाषा की दृष्टि से तथा आसपास के संयोगों को देखते हुए वास्तविक मौलिकता के निर्वाह के लिये कुछ खास अर्थ किये गये हैं। यद्यपि उनमें परंपरा की मान्यता' की अपेक्षा कुछ नवीनता अवश्य मालूम होती है किन्तु वह भिन्नता उचित है और सूत्रकारों के आशय के अनुकूल होने से उनकी तरफ वाचकवर्ग अपनी सहिष्णुता दिखायेंगे इसी भाशा से उस मिन्नता को स्थान दिया गया है। भिन्नता के दो-चार दृष्टान्त यहां देने से विशेष स्पष्टीकरण हो जायगा । 'नीयवट्टी' यह प्राकृत शब्द है और इसका संस्कृत अर्थ 'नीचवर्ती' होता है । परंपरा के अनुसार इसका अर्थ गुरु से नीचे भासन पर बैठनेवाला, ऐसा प्रच. लित है। किंतु थोड़ा शान्त एवं गहरा विचार करने से मालम होगा कि यह अर्थ बहुत ही संकुचित है, इतना ही नहीं प्रसंगानुसार असंगत भी है। इस शब्द का असली रहस्य अत्यन्त नम्रता सूचक है और तथानु. गत प्रसंग में 'मैं कुछ भी नहीं हूँ ऐसी नम्रतायुक्त भावनावाला, यह अर्थ विशेष प्रकरणसंगत एवं अर्थसंगत मालूम होता है। इसी तरह 'गुरुणामु-ववाय कारए' में भी गुरु के समीप रहने का भाव, व्यंजनाशक्ति से केवल यही हो सकता है कि 'गुरु के हृदय में रहने वाला': और यही अर्थ अधिक युक्त एवं व्यापक हो सकता है। क्या भगवान महावीर के सभी शिष्य उनके पास ही रहते थे ? इसीलिये वेसा अर्थ योग्य न लगन से दूसरा अर्थ संबंधी खुलासा टिप्पणी में किया है इसी तरह दूसरे खुलासे भी यथायोग्य रीति से जहां २ प्रसंग एवं भावश्यकता मालूम पड़ी हैं वहां २ किये हैं।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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