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________________ बरा. १०३१ AAAA AAEMBASSAUR | गति नहीं दीख पडती। मनुष्य लोकके भीतर रहनेवाले सूर्य आदि ज्योतिष्क विमानोंको भी गति-15 अध्याय |मान माना है परंतु उनकी गतिका कारण नहीं बतलाया है इसलिये विना कारण उनकी गति मानना ||5|| | अयुक्त है ? सो ठीक नहीं। आभियोग्य जातिके देवोंका निरंतर गमन करना स्वभाव है । वे ही उन || | विमानोंको चलाते हैं यह पहिले कह आये हैं इसलिये मनुष्य लोकके ज्योतिष्क विमानोंकी गति बाधित | नहीं। तथा कर्मफलविचित्रभावाच्च ॥६॥ कर्मोंका विपाक अनेक प्रकारसे माना गया है किसीके बद्धकर्म किसीरूपसे पचते हैं तो किसीके ई किसीरूपसे पचते हैं । जो आभियोग्य जातिके देव, मनुष्यलोकसंबंधी ज्योतिष्क विमानों को वहन करते हैं उनके कर्मोंका विपाक निरंतररूपसे होनेवाले गतिपरिणामके ही द्वारा होता है अन्य कोई खास कारण उनके कर्मविपाकका नहीं इसलिये मनुष्यलोकसंबंधी ज्योतिष्क देवोंकी गति अनिवार्य है। ग्यारहसौ इक्कीस योजन मेरुको छोडकर ज्योतिषी उस मेरुको परिक्रमा देते हैं। जम्बूद्वीपमें दो सूर्य और दो चंद्रमा हैं। छप्पन नक्षत्र हैं । एकसौ छिहचर ग्रह हैं। एक कोडाकोडि लाख तेतीस वोडाकोडि हजार नौ कोडाकोडिसै पचास कोडाकोडि तारे हैं । लवण समुद्र में चार सूर्य और चार चंद्रमा हैं । एकसै बारह नक्षत्र हैं। तीनसौ बावन ग्रह हैं। दो कोडाकोडि लाख, सडसठि कोडाको? हजार नौ कोडाकोडिसै तारे हैं। ___घातकीखण्ड द्वीपमें बारह सूर्य बारह चन्द्रमा हैं। तीनसौ छत्चीस नक्षत्र हैं। एक हजार छप्पन ग्रह १०३१ हैं । आठ कोडाकोडि लाख सैंतीस कोडाकोडिसौ तारे हैं। कालोद समुद्रमें वियालीस सूर्य और -
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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