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________________ अध्याय वियालीस चन्द्रमा हैं। ग्यारहसे छिहचर नक्षत्र हैं। छत्चीससे छियानवे ग्रह हैं। अट्ठाईस कोडाकोडि लाख, बारह कोडाकोडि हजार, नौ कोडाकोडिस पचास कोडाकोडि तारे हैं। पुष्करार्धमें बहचर सूर्य और बहचर चन्द्रमा हैं। दो इजार सोलह नक्षत्र हैं। त्रेसठिसे छत्चीस ग्रह हैं। अडतालीस कोडाकोडि लाख बाईस कोडाकोडि हजार दो कोडाकोडित तारे हैं । तथा पुष्कराधके दूसरे भागमें भी ज्योतिषियोंकी इतनी ही संख्या है। पुष्कराधसे चौगुनी पुष्करवरोद समुद्र में है, पुष्करवरोद. समुद्रसे आगेके द्वीप और समुद्रों में ज्योतिषियोंकी दूनी दूनी संख्या समझ लेना चाहिये। ___ ताराओंका आपसमें जघन्य अंतर एक कोशका सातवां भाग है। मध्यम पचाशकोश प्रमाण और उत्कृष्ट एक हजार योजनका है। सूर्योका आपसमें जघन्य अंतर निन्नानवे हजार छहसे चालीस योजन का है। उत्कृष्ट अंतर एक लाख छहसौ साठ योजनका है। जिसतरह यह सूर्योंका आपसका अंतर बतलाया है उसी प्रकार चंद्रमाओंका भी आपसका अंतर समझ लेना चाहिये। ___ जंबूदीप आदि द्वीपोंमें एक एक चंद्रमाके परिवारस्वरूप छ्यासठ कोडाकोडि हजार, नौ कोडाकोडिसै पचहत्तर कोडाकोडि तारे हैं। अठाईस महाग्रह हैं और अठाईस नक्षत्र हैं। . सूर्यके मण्डलरूप मार्ग एकसौ चौरासी हैं। इन्हींको एकसौ चौरासी गली कहते हैं, सूर्य इनमें ? गमन करता है। एकसौ अस्सी योजन प्रमाण जम्बूद्वीपके मध्यको अवगाहन कर सूर्य प्रकाश करता है। उसके अभ्यन्तर मण्डल पैंसठ हैं। लवण समुद्र में तीनसो तीस योजन प्रमाण क्षेत्रको अवगाहन कर प्रकाश करता है। वहां वाह्य मंडल एकसौ उन्नीस हैं । प्रत्येक मंडलका दुसरे दुसरे मंडलसे दोदो योजनका अन्तर है। दो योजन और एक योजनके इकसठि भागोंमें अडतालीस भाग प्रमाण उदयका अन्तर है | BookGAGECE
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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