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________________ RECAUSE .10 तथा सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इन तीनोंके समुदायको मोक्षमार्ग माना है यदि सम्यपाप ग्दर्शन आदिकी ही अखंडरूपसे सिद्धि न होगी तो मोक्षमार्ग भी सिद्ध न हो सकेगा । तथा जीव |तत्त्वके अखंडरूपसे निरूपण न होने पर शेष अजीव आदि तत्वोंका भी निरूपण न होगा । इसलिये हूँ यह आवश्यक है कि मुक्तिमार्गके उपदेशकी इच्छा रखनेवाले मनुष्यको सम्यग्दर्शन सम्परज्ञान और सम्यक्चारित्रको स्वीकार करना चाहिये क्योंकि यदि उनमें एक की भी कमी होगी तो मोक्षमार्गकी || अखंड सिद्धि न होसकेगी। जब सम्यग्दर्शन आदि स्वीकार किये जायेंगे तब उनका विषपभून अजीव आदि पदार्थों के समान जीव पदार्थ भी स्वीकर करना पड़ेगा । जब जीव पदार्थ खीकार किया जायगा तब उसके आधार आदि भी मानने पडेंगे । मनुष्य आदिके आधारस्वरूप द्वीप समुद्र आदि हैं इसलिये इस तृतीय अध्यायमें द्वीप समुद्र आदिकी रचनाका जो निरूपण किया गया वह सर्वथा युक्तियुक्त || है-निरर्थक नहीं । शंका - विवादाध्यासिता द्वीपादयो बुद्धिमत्कारणकाः सन्निवेश-विशेषत्वात् घटवदिति अर्थात् जिसमकार घट पदार्थ विलक्षण रचनाका धारक है इसलिए वह बनानेमें कुशल कुंभारद्वारा बनाया जाता है उसी प्रकार उपर्युक्त द्वीप और समद्र भी विलक्षण रचनाके धारक हैं। जोपदार्थ विलक्षण रचनाका घारक न होता है उसका अवश्य कोई कर्ता होता है वह अकारणक और बिना किसी काके नहीं हो सकता | इसलिए उन द्वीप और समुद्रोंका बनानेवाला कोई न कोई बुद्धिमान कर्ता अवश्य होना चाहिये ? सो 8 ठीक नहीं। ईश्वरका शरीर भी विलक्षण रचनाका धारक माना है क्योंकि विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतो मुखो विश्वतो बाहुरुत विश्वतः पात्। SRLMSi BBARBARSIOGRAMSARDARA SAMSSBNBOGERBARUPANES
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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