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________________ (१४) वहां पर धषवाकार ने-“सारिक शरीरगव पटपयामि और माहार शरीर गवति " इन पदों को रखकर यह मा कर दिया है कि या बोग मोर पयामि सम्बन्धी साम्य शरीर अथवा द्रव्गवेद से ही सम्बन्ध रखा है। माबोबसेस का कोई सम्बन्ध ममी है। और यहां पर बाद की अपेक्षा कोई विचार भी नहीं किया गया है। इस मागे ही योग और पारियों के समन्बय को घटित के जगदुबारक अंगैकदेश साता भाचार्य भूतल पुषइस भगवान पोतियों के साथ गतिमादि मार्गणामों में गुणस्थानों समन्वय दिखाते हैं। रहया मिलाइडिपसंमद सम्माइडिहाणे सिया पत्रगा सिया अपजायगा। (सत्र ७८ पृष्ठ १६०पवल) अर्थ सुगम - इस सूत्र द्वारा नारठियों की मां अवस्था में मिथ्याटि और संबत सम्यम्दृष्टि-पहला और पौषा ऐसे दो गुणत्वान बताये है। पहला चो ठीक ही है परन्तु पौवा गुणवान पास अवस्था में प्रथम नरक की अपेक्षा से हा गया है। बोंकि सम्पति मकर सम्पदर्शन के साथ पहले नरकाको सोपहपावसभी जैन बिव्यमान जानना होगा का सअषिकामाखरेच वर्ष और बाली
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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