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________________ सपना है। यहां पर भी विचार करने रसोई कि नरकियों प्रामनरको सभ्यास सहित सति लक्ष्य करके ही यह वां मत्र कहा गया मतावर प्रतिपादक। जैसा कि-समस्त पीछे के सूत्रों द्वारा एवं पर्याप्ति अपर्याप्ति निरूपण के मरण द्वारा हमने स्पष्ट किया है। इसी का और भी स्पष्टीकरण इससे भागे के सूत्र में देखिये। मासएस माइढि सम्मामिछाइडिटणे शियमा पजना। r (सूत्र ८० पृष्ठ १६० पवन सिद्धांत) अर्थ-बाकियों में दूसरा और तीसरा (पासादन और मिष) गुणस्थान नियम से पर्याप्त अवस्था में ही होता है। इस सूत्र की व्याख्या करते हुए पवनाकार पष्ट रूप से कहते हैं कि नारकाः निष्पमस्टपर्याप्तयः संतःताभ्यां गुणाभ्यां परिणमन्ते नापर्यानावस्यायाम् । किमिति तत्र तो नोसते इति चेत्तयो स्ववोचिनिमितपरिणामामावात सोप किमिति पोर्नस्थादितिचेन् । स्वाभाब्यात । बाराणामग्नि सम्बन्धादरममावाबमुगवानां पुनर्भस्मनि समुत्म्यमानानां मपर्याप्ताबायां गुणश्यस्य सत्याविरोधानियमेन पर्याप्त इति न पटते इति चेन, तेषां मरणाभावात भावे वा-न ते वनोपयो "णिरवाशे रयिया बडिर समाया हो पिरयदि जादि णो देवजादि निरिक्सा गरि मगुस्समलिंब आदि" इत्यनेनाण निषित्त्वात् । वायुषोऽजमाने मिस्मायामामेवा नियमाचेन तेवामपमुल्योरवस्यात् । भस्मबाप.
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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