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________________ ' (३५) इसी प्रकार बैफियिक मिश्र में अपर्याप्त अवस्था बताकर अपर्याप्त अवस्था में कार्माण काययोग भी बताया गया। यह बात भी शरोरोपत्ति से ही सम्बन्ध रखती है। . पाहार शरीर के सम्बन्ध में तो धवलाकार ने और भी स्पष्ट किया है किमाहारशरीरोत्थापक: पर्याप्तः संयतत्वान्यथानुपपत्तेः। (धवला पृष्ठ १५६). अर्थात अाहार शरीर को उत्पन्न करने वाला साधु पर्याप्तक ही होता है। अन्यथा उसके संयतपना नहीं बन सकता है इसका तात्पर्य यह है कि प्रौदारिक शरीर की रचना तो उसके पूर्ण हो. चुकी है, नहीं तो उसके संयम कैसे बनेगा। केवल माहारक शरीर की रचना अपूर्ण होने से उस अपयांत कहा गया है। इस से औदारिक द्रव्य शरीर को ही माधार मानकर माहारक शरीर की अपर्याप्ति का विधान सूत्रकार ने किया है। यह बात खुलासा हो जाती है। इसी सम्बन्ध में धवलाकार ने यह भी कहा कि. भवावसी पर्याप्तका भौदारिकशरीरगतषटपर्याप्त्यपेक्ष्या, माहारशरीरगतपर्याप्तिनिष्पत्यभावापेक्षया स्वपर्याप्तकोऽसौ। . . (पृष्ठ १५५) अर्थान- प्रौदारिक शरीरगत षटपर्याप्तियों की पूर्णता की, अपेक्षा तो वह छठे गुणस्थानवर्ती साधु पर्याप्तक ही है, किन्तु. माहार शरीर गत गर्यालयों को पूरा नहीं होनेसे वह अपर्याप्त
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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