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________________ (३२) यह विवेचन द्रव्य शरीर से ही सम्बन्ध रखता है। क्योंकि प्रसंसोजोव के मन और एकेन्द्रिय जीव के भाषा की उत्पत्ति नहीं होती है। इस प्रकार सरकार ने योगों के बीच में सम्बन्ध - प्राप्त पर्याप्तियों का स्वरूप और उनका एकेन्द्रियादि जीवों के भिन्न २ द्रव्य शरीरों के साथ सम्बन्ध एवं गुणस्थानों का निरूपण करके उनी भौदारिकादि काययोगों को पर्याप्तियों और अपर्याप्तयों में घटायावह इस प्रकार है पोरालिय कायजोगो पजताणं मोरालिय मिम्स काय बोगो अपजत्ताणं। सूत्र ७६ बेब्बिय कायजोगो पजत्ताणं वेत्रिय मिस्स काय जोगो अपज्जत्ताणं । सत्र ७७ पाहार कायबोगो पजत्ताणं पाहार मिस्स काय जोगो पपजताएं। सूत्र ७ (पृष्ठ १५८-१५६ धवन) अर्थ सुगम और स्पष्ट है। इन सूत्रों की व्याख्या में धवलाबर ने यह बात स्पष्ट करती है कि जबतक शरीर पर्याति निष्पा नहीं हो पाती तब तक जीव अपर्याय (निर्वृत्यपर्याप्तक) कहा जाता है। इससे स्पष्ट किया सबकान द्रव्य शरीर की रचना और उसकी पूर्णता से सम्प
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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