SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४४ वा कर लिया जब चामुएशराय ने पूछा कि महाराज ऐसा क्यों किया मैं भी तो इस शास्त्र के रास्य को जानना चाहता हूँ तब प्राचार्य महाराज ने कहा कि इस सिद्धांत शास्त्र को वीतराग महर्षि ही पढ़ सकते है गृहस्थों को इसके पढ़ने का अधिकार नह है। जब पामुएडराय की अभिलाषा उसके विषय को जानने की दुई तो सिद्धांत चक्रवर्ती भाचार्य नेमिचन्द्र ने उन सिद्धांत शास को संक्षिप्त सार लेकर गोम्मटसार प्रन्थ की रचना की। 'गोम्मट' पामुखराय का अपर नाम है। उस गोम्मट के लिये जो सार सो गोम्मटसार ऐसा यथानुगुण नाम भी उनमोने रख दिया। इसलिये जब गोम्मटसार अन्य उसी पटवण्डागम सिद्धांत का सार। तब गोम्मटसार में तो सर्वत्र द्रव्योद एवं द्रव्य शरीरों। वर्णन पाया जाय परन्तु जिस सिद्धांत शास्त्र से यह सार निया गया है उसमें द्रव्यवेष बद्री भी कथन नहीं बताया जाय और वह प्रन्यांतरों से जाना जाय यह बात किसी बुद्धिमान की समझ में पाने योग्य है। -टोकाकार और टीकापन्यों पर भसम मारोप इन भावपकी विद्वानों के लेखों में यह बात भी हमारे देखने में बाई, किमल प्रन्यों में व्यवेद और भाबर वेदो भेर नहीं मिलते हैं, जब से सी मुकिका विधान द्रव्यही परक किया जाने लगा है सब से दोबा प्रन्यों में या वर बसवती पन्नों में द्रम्पवेदों का भी उल्लेख किया जाने लगा है। हमात पं. आपन बी विनंत शासो महोदय ने शिका। सोनी जी
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy