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________________ कुम्मुणस जोणीये इस गाथा में किस योनि में धेन जीव पैदा होते हैं यह पाया गया है ये सब कथन इम्यके की मुख्यता रखता। पज्जतमणुस्साणं तिपरत्यो माणुसीण परिमाणम् । (गो० औष० गा० १५) . इस गाषा में यह बताया गया है कि जिसनी पर्याप्त मनुष्यों की राशि उस में तीन चौथाई लिया है। टीकाकार ने मानुषी का बथै द्रव्यत्री ही किया है। लिखा 'मानुपीए ध्यत्रीणामिति ।' इससे बहुत सार है कि गोम्मटसार मन में व्यवेद का कथन भी। इसी प्रकार प्रत्येक मागंणामों के द्रव्य शरीर धारी नीबों की संख्या बताई गई है। इन सब प्रकरणों के कथन से यह पास भले प्रकार सिहो जाती है। कि गोम्मटसार या पटसएडागम में द्रव्य भावदोनों का कथन है। केवल भारत का कथन बताना प्रन्य के एक भाग का ही कहा जायगा। अषवा वह मयन अन्य विरुद्ध ठहरेगा। क्योकि एक दोनों में ट्रम्यवेरकी और भ.पवेद की पाविधान है। गोम्मटसार इसी सिद्धांत शास्त्र का संपिप्त सार है। गोम्मटसार अन्य की भूमिका में यह बात निसीईक जब चामुण्डाय भाचार्य नेमिचन्द्र सिद्धांत पक्रवर्ती परण निकट पहुंचेथे तबरेवाचार्य महाराज सिद्धांत शास्त्र पाण्याव कर रहे थे, उन्होंने चामुणको रेखते ही हसियद शाम
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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