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________________ १४० इससे यह सिद्ध होता है कि व्यवेद कोई शरीर से भिन्न पदार्थ नहीं है। बो शरीरनाम मांगोपांग नामकमै निर्माण मे मादि के उन्य से जीव के शरीर की रचना होती है जिसमें गतिकम का उदय गी प्रधान कारण है। वही द्रव्यशरीर जीव काय वेद कहा जाता है। अतः गति मार्गणा में पौरारिक काय योग और पर्यात साथ जहां गुणस्थानों का समन्वय रिया जाता है वहां वह द्रव्यशरीर अथवा द्रव्यवेद के साथ ऐसा समझना चाहिये। परन्तु जैसे भाववेद का उल्लेख है से द्रव्यवेद का नहीं। क्योंकि बेर मार्गणा में नोकषायोदय रहता है। द्रव्य किसी मागंदा म नी है और वह किसी नाम की में भी नहीं है। अत एव उसकी विवक्षा शास्त्रकारों ने नहीं की है। परनु उसका प्राण, सम्बन्ध चौर समन्वय अधिनाभावी है। पटखण्डागम और गोम्मटसार में द्रव्यर के कपन को समझने के लिये यही एक पन्तस्तत्व अथवा कुजीहै। इसके सिवा द्रव्यवेद का खुलासा वर्णन भी गोम्मटसार मन में यह बात भी हम बता चुके हैं। एक दोसरण यहां पर भी देते हैपीपुसंसरोरं जाणं शोकम दसकमंतु। (गो०. ७६ पृष्ठ ६७) नोवेव का नोकमे कीठय शरीर, पुरुषका मोक्मे द्रव्य पुरुष शरीर है। नपुसकवेदानोमनपुंसक बशरीर।
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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