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________________ १४१ यह गोम्मटसार मूब गावा दम्बरबविधान करती है। पम्तिमतिय संहणणग्रमो पुण कम्मभूमिमहिनाणं । (गो००० गा० ३२ १२ २५ टी०) स्मभूमि की महिलामों (द्रव्याखयों) नवीन संहनन होते हैं। यह भी द्रव्यको बस्ट कथन ।। मूब प्रय है। और भी देखिये पाहारयजोगा चमक होति एक समम्मि । पाहारमिस्सोगा सत्तावीसा दुस्सं ।। (गो० जी० गा० २७० १ ५८४) एक समय में सस्कृष्ट हल में ४ मारकर योग पाने हो सकते हैं तथा पाहारक मित्रकाय वालों की सण्या एक समय में २७ होती है। यह कथन छठे गुणस्थानवी माहारक प्रयोग धारण करने वाले व्यशरीर धारक मुनियों को। इस गाया में भाव परी गम्बभी नहीं चल द्रव्यशरीर काही कवन है। बार भी गेमिया खलु संढा परिये तिणि होति संमुखा। संता सुरभोगभुमा पुलिची बेगा । (गोजी. गा० १३१४२१४ टी.) नारसन नपुसक ही होते है। मनुष्य नियंत्रों में तीनों पाते हैं। सम्मन और नपुसकती होते है। देव और मोगभूमि के बीच होनी और पुरुषवेशही होते है। यहां पर द्रव्य मोर भावदेवदोनों लिये गये है। शेष सालिका
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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