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________________ ११६ नपुंसक रूप चारित्र मोहनीय के भेद हारूप नोकपाय कर्म के उदय में जो पुरुष खी नपुसकरून मामा के भाव होते हैं उन्हो को पुवेद खोबे नपुंसक वेद कहा जाता है। यह तो भाववेद का कथन है। द्रव्यवेद का इस प्रकार है-निर्माण नामकर्म के उपब भांगोपांग नामकर्म विशेष के उदय से पुल पर्याय विशेष जो द्रव्य शरीर है वही पुरुष बी नपुंसक द्रव्यवेद रूप कहलाता है 1 यह तीनों का स्त्ररूप द्रव्य भाववेद रूप से कहा गया है प्रत्येक का इस प्रकार है पुवेदोश्वेन श्रियामभिलाष मैथुन झाकांतो जीव: भात्रपुरुषो भवति । पु'वेदोदयेन निर्माणनामकर्मोदय-युक्तांगोपांगनाम कर्मो यत्रशेन श्मश्रुकूचंशिश्नादि-निगांकित शरीरविशिष्टशे जीवो भवप्रथमसमयमादि कृत्वा चरम-समयपर्यतं द्रव्यपुरुषो भवि । B अर्थात- पुरुष बेद कर्म के उदयसे निर्माण नाम कर्म के उदय से युक्त मांगोपांग नाम कर्मोदय के बशसे जो जीव का मूछें दाढ़ी लिंगादिक चिन्ह सहित द्रव्यशरोर है वही द्रव्यपुरुष कहा जाता है और वह द्रव्यपुरुष जन्म से लेकर मरण पर्यन्त तक रहता है। इसी प्रकार भागस्त्री द्रव्यकी, भावनपुंसक द्रव्यनपुंसकके भिन्न भिन्न बस गोम्मटसारकार ने और टीकाकार ने इसी प्रकरण में बताये है परन्तु लेस बढ़ने के भय से एक पुरुषवेद का भाव और द्रव्यवेद हमने यहां उद्धृत किया है।
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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